Book Title: Shrutsagar 2016 08 Volume 03 03 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR August-2016 पर्युषण महापर्व उपलक्ष्य में कु. नीना जैन संपादित पुस्तक- 'मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति पर जैन सन्तों (आचार्यों एवं मुनियों) का प्रभाव मे से पू. मुनि श्री विवेकहर्ष, पू. मुनि श्री परमानंद आदि के सदुपदेश से बादशाह जहाँगीर द्वारा जारी किया गया फरमान का अनुवाद दिया गया है. जगद्गुरु श्री हीरसूरि म. सा. व अकबर के फरमान के बारे में तो काफी वाचक जानते ही होंगे, जैन मुनियों के उपदेश से जहाँगीर बादशाहने भी ऐसा फरमान दिया था वह वाचकों व इतिहास रसिकों के लिये विशेष जानकारी व आनंद का विषय होगा. विशेष में वाचकों को ज्ञात हो कि- वोल्युम-२ इश्यु-१२ मई २०१६ के अंक में प. पू. आ. श्री योगतिलकसूरिजी म. सा. द्वारा संपादित लेख “श्री वीरजिन हालरथु” जो पत्रांक-८ पर अप्रकाशित कृति के रूप में छापा गया था, तथा इस लेख में प. पू. आ. श्रीयोगतिलकसूरिजी म. सा. द्वारा यह भी उल्लेख किया गया था कि- “वर्तमानमां प. पू. दीपविजयजी म.सा. कृत तथा प. पू. अमीयविजयजी म.सा. कृत बे हालरडा मळे छे. हालरडाना भावमांज पू. आत्मारामजी म.सा. कृत स्तवन मळे छे. अहीं आपेला हालरडां जेवाज शब्दोमां पू. रूपविजयजी म.सा. ना नामे पण आवी कृति हस्तप्रतमां मळे छे.” ___ बाद में प्रस्तुत लेख के बारे में पू. मु. श्री सुधर्मसागरजी म. सा. ने कोबा ज्ञानमंदिर को ध्यान दिलाया कि यह कृति अप्रकाशित तो नहीं बल्की कूट कृति है जो सुप्रसिद्ध कवि श्री दीपविजयजी रचित हालरडा कृति का संक्षेपकरण करके हस्तप्रत में लिख दिया गया है. प. पू. श्री वीरविजयजी जैसे उच्च दरज्जे के विद्वान ऐसा नहीं कर सकते, लेकिन किसी अन्य के द्वारा वीरविजयजी का नाम जोडकर हस्तप्रत में लिख दिया गया है. दूसरी बात यह भी है कि हालरडे की मात्र दो-तीन ही नहीं, प्रायः ११ कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है. इस विषय में हमारा ध्यान आकृष्ट करने हेतु प. पू. मुनि श्री सुधर्मसागरजी म.सा. के हम आभारी है. हमारे द्वारा प. पू. आ. श्री योगतिलकसूरिजी म.सा. के ध्यान में भी यह तथ्य ला दिया गया है और उनकी ओर से भी सहमती दर्शाई गई है. अतः वाचक वर्ग उपरोक्त वास्तविकता को ध्यान में लें. पर्युषण महापर्व की पूर्व उषा पर कहना चाहते है कि वर्ष दौरान हमारे द्वारा किसी भी प्रकार से किसी को भी मन दुख का कारण हुआ हो या जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ भी छाप दिया गया हो तो त्रिविध-त्रिविध प्रकार से मिच्छामि दुक्कडं. उदार मन से हमारी क्षमाप्रार्थना का स्वीकार करे. साथ-साथ आपकी पर्युषण आराधना सुंदरतम बनी रहे ऐसी शुभकामना के साथ... For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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