Book Title: Shreyans Jin Stava
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ जान्युआरी-2007 37 ढाल - २ मधु मादननी देशी जीरे विष्णु महीधर तांम जोसी तेडि लगन थपाविया जीरे जी० जीरे अतिमोटे मंडाण श्रेयांसकुमर परणावीया जी० ॥१॥ जीरे सुख विलसें दिनरात केइ दिन हरखमें जोगवी जीरे जी० जीरे एकवीस लाख वर्ष कुमार पदवी भोगवी जी० ॥२॥ जीरे एकदिन विष्णु नरेंद मनमें संवेग ऊपनो जी० जीरे थापी जीनने राज भय जाणि भवजल कूपनो जी० ॥३।। जीरे सूगुरू पासें जाय चारित्र चोख्यु आदयों जी० जीरे स्त्री भर्तार बे साथ तपें करी पाप भय क्षय को जी० ॥४॥ जीरे मातपिताई करी काल सनतकुमारें बे सूर थया जी० जीरे हवें श्रेयांशकुमार राज करे प्रजा उपर दया जी० ।।५।। जीरे इम एकवीस लाख वर्ष राज करतां दिन थया वली जी० जीरे तेहवें लोकांतिक देव प्रभुनें सीस नमावें लली लली जी०।६।। जीरे जय जय तुं जिनदेव शासन धर्म वरताविइं जी० जीरे तुम पूर्वे जीन थया दश तेह परि जय पताका बंधाविइं जी० ॥७॥ जीरे एहवू सुणी निजकर्ण धर्म धुराई मन उल्लस्युं जी० जीरे दिन प्रतें वरसें दांन एक कोडि आठ लाखसुं जी० ॥८॥ जीरे एक वरसनो सवि दान तेहनि भवि संख्या सुणो जी० जीरे तिनसे कोडि अठ्यासी कोडि एंसी लाख उपरि गणो जी० ॥९॥ जीरे इम देइ संवत्सरी दान फागुण वदि तेरस दिने जी० जीरे श्रवण मकरें स्थित चंद्र संयम आदरे महामने जी० ॥१०॥ जीरे छठ तपें जिन देव सूर विमलप्रभा शिबिका धरें जी० जीरे पहेरावी भुषणसार पालखी बेंसी सिद्ध करें जी० ॥११॥ जीरे चिहुं दिशि उभा इंद्र छत्र धरें चामर विझतें जी० जीरे साथें चतुरंगी सेन मधुरें स्वरें मादल गुंजतें जी ॥१२॥ जीरे सिंहपुरी नगरी मध्य ललना ल्ये उवारणा जी० जीरे सहसाम्र वनें , अशोक शिबिका ठवे शुभधारणा जी० ॥१३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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