Book Title: Shreyans Jin Stava Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ 40 तेह विचि देवचं (छं) दो हो तिहां वृक्ष अशोक जोयण एक झाझोरो हो समोसरण उपरि बार गूणो जिन देहथी ऊंचो सार ||८|| चंद० चार दिशें सिंहासन फिरता हो तिहां जीननी छाइ रह्यो एह अशोक तलें देवपीठ | चार सिंहासन उपरि हो विराजीत छत्र त्रिण बेठक रलीआमणी वली चार निंचा पादपीठ ॥९॥ चंद० अनुसन्धान- ३८ झलकता जिनरूप समत्रिण बिंब | श्वेत चामर विजाता हो प्रभु चिहुं पासें बें बें शोभता भामंडल चार पूठि अविलंब ॥ १०॥ चंद० धर्मचक्र चिहुं दिशें जिन आगे हो सोवन कमल में गगनें फरें धजछत्रादि मंगलीक आठ । मणीमें थंभें पूतलीउं हो नृत्य करती वरदाम मणिमे द्वारे चारे हो ते तोरण त्रिण त्रिण Jain Education International वेदिका चिहुं द्वारें मंगल पाठ ||११|| चंद० हुईं धूप व्यंतरीक उघाहंत । जोयण एक सहस प्रमाण हो इंद्र ध्वज दंड उपरि लहकतो चार धजा चिहुं दिशि सोहंत ॥ १२ ॥ चंद० समभूतल धरणीथी हो अति उंचो अढी कोश भण्यो ए समोसरणनो मान । ऋषभादि वीर पर्यंत हो ए सघलो निज निज करें जाणवो त्रीहुं गढई वास सहस सोपान || १३ || चंद० रत्नगढ़ बाह्य ईशानें हो देवछंदो मणीनो सूरें करें तिहां जिनने वीसामा ठाम । थलयर तिर्यंच खयरा हो वली जलचर बीजें गढ निसूणे देशना चउपय बेंसें हित काम ||१४|| चंद० ( बीजें गढ़ें बेसे अभिराम) वाहन सुखासन पालखी हो पहेलें गढ ठवि रंगस्यूं चोखुणे दो दो वावि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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