Book Title: Shreyans Jin Stava
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ जान्युआरी-2007 45 लखचोरासि हो अवतरण छोडि, पू० // 9 // सितरसो ठाणा बोल जोईने ललना, देवेंद्रसरि हो चरित अविलोय, क० / आवश्यक वृत्ति अनुसारथी ललना, __ मि गुंथ्या हो बोल निरबुद्धि होय, पू० // 10 // एहमां ओछु अधिकुं कर्तुं ललना, विचारी हो शुद्ध करयो विद्वान, क० / श्रीश्रेयांश शासन प्रतपयो ललना, __ मंदिरगिरि हो वली गगनें भाण, पू० // 11 // पंडित चतुरसागर गुरु शोभता ललना, तस शिशु हो लालसागर विनित, क० / तस पदकमल ..... ..... सम ललना, विशेष कहे हो..... पू० // 12 // वेदांक संयम संवते ललना, आसो सित हो दशमी रहिय चोमास, क० / आडीसरना संघनी ललना, श्रीवत्सादेवी हो तुम पुरेयो आस, पू० // 13 / / // कलश // इम थुण्यो जिनवर भक्ति निर्भर एकादशम अरिहंत ए। आडिसर मंडण भयविहंडण सिधरंजन भगवंत ए // तस(प) गच्छनायक सुमतिदायक श्रीविजयक्षेमसूरीस ए / तस पट्ट प्रभकर तेज दिनकर श्रीविजयदयासूरि ईश ए // 1 // तस गच्छ राजें अतिसकानें श्रीकूशलसागर वाचकवरो / तस शिस पंडित सगुण मंडित उत्तमसागर श्रुतधरो // . तस चरण सेव बुद्धि चतुर गुण निधि तस शिश पंडित लाल ए। तस शिश एम विशेष जंपें प्रभु गुण भणे ते मंगल माल ए // 2 // .. // सर्वगाथा - 101 // // इति श्रेयांश जिनस्तवन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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