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अनुसन्धान-३८
श्री श्रेयांसजिन स्तवन
सं. उपाध्याय भुवनचन्द्र आ दीर्घ स्तवनकृतिनी हस्तप्रति राधनपुरना विजयगच्छना ज्ञानभण्डारमा छे. फोटोकोपी करावती वखते पोथी-प्रतकमांक नोंधवानुं रही गयुं छे.
रचनावर्ष १७९४ छे. रचयिता पण्डित अथवा पंन्यास विशेषसागर छे. तेमनी गुरुपरम्परा कृतिना अन्तभागमां आपेली छे : विजयक्षमासूरिविजयदयासूरि-वाचक कुशलसागर-पण्डित उत्तरसागर-चतुरसागर-पण्डित लालसागर -विशेषसागर. हस्तप्रतमां 'विजयक्षेमसूरि' लखेलुं छे, परन्तु तपागच्छनी पट्टावलीमा 'विजयक्षमासूरि' जोवा मळे छे.
सांतलपुरना मार्गे कच्छ-वागडमां प्रवेश करतां सर्वप्रथम गाम आडीसर आवे छे. अहीं श्री श्रेयांसनाथ भगवाननुं देरासर हतुं. मूलनायक श्रीश्रेयांसनाथ भगवाननी प्रतिमा अने प्रतिष्ठा विशे प्रस्तुत रचना सुन्दर प्रकाश पाडे छे. पाटणना सोनी रायमल्ले श्री विजयसेनसूरिना हस्ते आ प्रतिमानी प्रतिष्ठा सं. १६६८मां करावेली., आ बिम्ब पाटणमा एकसो चौद वर्ष रह्यु. आडीसरना संघे नवं देरासर बंधाव्यु. मूलनायकनी प्रतिमानी जरूर हती, ते माटे सेठ रायमल्लनी भरावेली प्रतिमा पाटणथी लाववामां आवी. सं. १७८२ मां मोटी धामधूम साथे प्रतिष्ठा करवामां आवी. स्तवनमां आ प्रतिष्ठा उत्सवनं वर्णन नथी आपवामां आव्युं परंतु बिम्ब भरावनार श्रेष्ठिनो परिचय विशेषरूपे अपायो छे : ओसवाल वंश, बूहड शाखा, गोठि गोत्र, सोनी रायमल्ल ठाकरसी, भार्या नगाई. स्तवनमां श्रीश्रेयांसनाथ प्रभुना जीवनना प्रसंगोनुं काव्यमय वर्णन छे. एक-बे स्थले पंक्तिओ सुधारीने लखवामां आवी छे, तेथी कदाच आ प्रति मूलादर्श प्रति होय.
श्रीश्रेयांसनाथ भगवाननुं देरासर भूकम्पमा ध्वस्त थयुं छे, प्रतिमाजी सलामत छे अने नूतन मन्दिरमा हवे पुनः प्रतिष्ठा थई छे. जो के मुख्य जिनालय घणा समयथी श्रीआदीश्वर भगवाननुं गणाय छे.
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॥ श्रीमत् सद्गुरुभ्यो नमः ॥
॥हा॥
ऋषभ जिन मंगल करण परम सौख्य दातार । प्रथम तेह जिनवर नमो जगगुरु जगदाधार ॥१॥ तुं वरदाई सारदा तुझ मुखडुं इंदु समान ।
वीणा पुस्तक सोहती घें मुझ वचन रसान ॥२॥ मुझे गुरु चरणकमल नमुं जे श्रुतज्ञान दातार ।
श्री श्रेयांस प्रभुने स्तवुं जस गुण परम अपार ||३||
ढाल
-
१
मथुरानगरीनी मालणी - ए देशी
पुष्करवर नग्ग दीपतो ए तो पूर्ववर दीव मझार हो जी (जि) न
ओल शुभ भावसुं ॥ ए आंकणी ॥ शीता नदी दक्षण दिशे ए तो रमणिज विजय सुखकार हो ॥१॥ जी० तिहां नगरी शुभापुरी, ए तो मानूं लंक समान हो जि० राज करे वसुधापति, नलनीगुल्म नृप ते राजन सवें सुख भोगवें ए तो जोगवे मन वयराग हो । जि० तिहां वज्रदत्त गुरू आव्या सुगी ए तो वांदवा जाई महाभाग हो || ३ || जि० अमृतमय सुणि देशना ए तो लीधों संयमभार हो । जि०
अभिधान हो || २ || जी०
शुभ भावें तप करें आकरा इग्यार अंग पाठक धार हो ||४|| जी० एणि विधे चारित्र पालीनें तिहां कतिचित गोत्रे करी काल हो । जि० अच्युत देवलोकें ऊपना तिहां बावीस सागर आयु पाल हो ||५|| जि० बारमा सुरलोकथी चवें ए तो देवस्थितिनो करें अंत हो । जि० जेठ वदि छठि दिने श्रवण नक्षत्रई शुभ शंत हो ॥६॥ जि० मकर राशि आव्ये कौमुदी मध्याह्न निशि समें ताम हो । जि० देशविशेषमें दीपती सिंहपुरी कंचनमय धाम हो ||७|| जि० तेह नगरीनो राजीओ ए तो विष्णु भुपति कृपाल हो । जि० तस घरि सूरललना जिसि काई विष्णुदेवी पतिव्रतापाल हो ॥८॥ जि०
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अनुसन्धान-३८
दंपति विषयक सुख भोगवें कांई जोगवें राम जिम शीत हो । जी० एक दिन परम आनंदसुं सुख सेजें पोढ्यां नहि भि(भी)त हो ॥९॥ जि० चउद सुपन देखें भला ए तो विष्णुदेवी महामन्न हो । जि० तेहवि सूरलोकथी चवी प्रभु विष्णुमाता कुखें ऊतपन्न हो ॥१०॥ लीलाई सुपन देखी करी संभलावें निज पति पास हो । जि० निजमति अनुसारें कहे सुत होसे त्रिलोकी प्रकाश हो ॥११॥ जि० अनुक्रमे गर्भ वधतें थके पुर्ण हुआ शुभ नव मास हो । जि० उपरि षट् दिन व्यतिक्रम्यई फागुण वदि द्वादशी खास हो ॥१२।। जि० अद्ध निशि श्रवण नखत्ते मकरे स्थित रोहिणी कंत हो । जि० तेहवें जिनजी जनमीया तिहां वरत्या शुभ विरतंत हो ॥१३।। जि० जन्म कल्याणक सुर करें सोहंमादि चोसठि इंद हो । जि० तिम निज पूरी शिणगारिने जन्मोत्सव करई नरेंद हो ॥१४॥ जि० असूचि टालीनें नाम ठवें श्रेयांस कुमर दयाल हो । जि० बुध चतुरसागर गुरु सेवथी शिश कहें जिनगुण रसाल हो ॥१५॥ जि०
॥सर्वगाथा-१८ ॥
॥ दूहा ॥ अविनासी इग्यारमो मतिश्रुतअवधि निधान ।
जन्मजात त्रय ज्ञानमय तारण भवनिधि सोपान ॥१॥ पंच धावि लालिजतां वधे जिम सूरतरू छोडि ।।
दिन दिन कोडि वधामणी सूरनर करें मन कोडि ॥२॥ इक्षा वंशें उपना काश्यप गोत्रं सदैव ।
सोवनवान देह जलहलें लंछन खडगी अतिव ॥३॥ एक सहस नई अड अधिक लक्षण अंगें जगीश ।
उछेह अंगुल इंसी धनुष आत्मंगुल एकसो वीस ॥४॥ अनंत बल लक्षण अधिक जोवन वय जब लीध ।
__ मातपिता अति नेहसुं विवाह सामग्रि कीध ॥५॥
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ढाल - २
मधु मादननी देशी जीरे विष्णु महीधर तांम जोसी तेडि लगन थपाविया जीरे जी० जीरे अतिमोटे मंडाण श्रेयांसकुमर परणावीया जी० ॥१॥ जीरे सुख विलसें दिनरात केइ दिन हरखमें जोगवी जीरे जी० जीरे एकवीस लाख वर्ष कुमार पदवी भोगवी जी० ॥२॥ जीरे एकदिन विष्णु नरेंद मनमें संवेग ऊपनो जी० जीरे थापी जीनने राज भय जाणि भवजल कूपनो जी० ॥३।। जीरे सूगुरू पासें जाय चारित्र चोख्यु आदयों जी० जीरे स्त्री भर्तार बे साथ तपें करी पाप भय क्षय को जी० ॥४॥ जीरे मातपिताई करी काल सनतकुमारें बे सूर थया जी० जीरे हवें श्रेयांशकुमार राज करे प्रजा उपर दया जी० ।।५।। जीरे इम एकवीस लाख वर्ष राज करतां दिन थया वली जी० जीरे तेहवें लोकांतिक देव प्रभुनें सीस नमावें लली लली जी०।६।। जीरे जय जय तुं जिनदेव शासन धर्म वरताविइं जी० जीरे तुम पूर्वे जीन थया दश तेह परि जय पताका बंधाविइं जी० ॥७॥ जीरे एहवू सुणी निजकर्ण धर्म धुराई मन उल्लस्युं जी० जीरे दिन प्रतें वरसें दांन एक कोडि आठ लाखसुं जी० ॥८॥ जीरे एक वरसनो सवि दान तेहनि भवि संख्या सुणो जी० जीरे तिनसे कोडि अठ्यासी कोडि एंसी लाख उपरि गणो जी० ॥९॥ जीरे इम देइ संवत्सरी दान फागुण वदि तेरस दिने जी० जीरे श्रवण मकरें स्थित चंद्र संयम आदरे महामने जी० ॥१०॥ जीरे छठ तपें जिन देव सूर विमलप्रभा शिबिका धरें जी० जीरे पहेरावी भुषणसार पालखी बेंसी सिद्ध करें जी० ॥११॥ जीरे चिहुं दिशि उभा इंद्र छत्र धरें चामर विझतें जी० जीरे साथें चतुरंगी सेन मधुरें स्वरें मादल गुंजतें जी ॥१२॥ जीरे सिंहपुरी नगरी मध्य ललना ल्ये उवारणा जी० जीरे सहसाम्र वनें , अशोक शिबिका ठवे शुभधारणा जी० ॥१३॥
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अनुसन्धान-३८
जीरे पंचमुष्टी करे लोच इंद्र कचोलो आगल धरे जी० जीरे एक सहस नर साथ पुर्वाह्न समें दीक्षा वरें जी० ॥१४|| जीरे तेहवें चउनाण उपन्न देवदुष्य एक लाखनो भलो जी० जीरे सिद्धारथपुरें पहुत नंद नामे ते इभ्य गुणनीलो जी० ॥१५।। जीरे खीरे पारणुं तस गेह पंच दीव्य प्रगट थया जी० जीरे साडीबार कोडिसोवन वृष्टि त्रीजे भवें नंद मोक्षं गयो जी० ॥१६।। जीरे मास अडनो उक्कोस तपमान विहार करें आरिज देशमां जी० जीरे प्रमाद नहें लवलेश उपसम्ग नहिं उपशमा जी० ॥१७॥ जीरे छद्मस्थ काल बे मास माघ वदि-नष्टचंद्र' वासरे जी० जीरे सिंहपुरी वन सहसाम्र तिन्दूक तरु बार गुणो आसरे जी० ॥१८॥ जीरे तेह तरुवरि ध्यान धरंत छठ पुर्वाह्न चंद्र वहे जी० जीरे ते दिन केवल लहंत बुध चतुरसागर सीस इम कहें जी० ॥१९॥
॥सर्वगाथा-४२ ॥ ॥ दूहा ॥ कर्म हणी केवल लह्यो एकादशम अरिहंत ।
इंद्रादिक आवि तिहां प्रभु पद सीस ठवंत ॥१॥ वांदि सूरपति इंद्र कहे प्रभुने नाण उपन्न ।
ते माटे त्रिगडुं रचो नव नव भक्ति निप्पन्न ॥२॥ एहतुं सुर सहु सांभली प्रथम तव वायकुमार ।
जोयण एक मही सारवें टालें तुण रज अंधार ||३|| मेधकुमार मन हर्षस्युं सुरभादिक जलधार ।
ते उपरि षट् ऋतु तणा वरसें फुल अपार ॥४|| तव व्यंतर सूरपति रचें मणिकनक रत्रमइ पीठ ।
ते उपरि पंच वर्ण कुसुम जानुप्रमाण सूपइष्ट ।।५।। उधई बेटें कूशम धरें वाणव्यंतर तिहां देव ।
चोसठि इंद्र प्रभुने स्तवी ललित वचन कहे ततखेव ॥६॥ ऋद्धि अनंती तुम तणी में किम वणि जाय ।
ज्ञान दिवाकर साहिबा द्यो मुझ निजर पसाय ॥७॥ १. अमावास्यादिने इत्यर्थः ॥
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ढाल - ३ अंबरी ऊभे गाजें हो भटीआणी राणी वडचुइं - ए देशी भुवनपति तिहां सूरपति हो तव पहेंलो गढ रचना करें रूपानो पायार। कोशिसां सोवनमय हो तिहां फलके सुवृत्ताकारमें भवि सुणो एह वियार ॥१॥ चंद सूरय गह पमुहा हो प्रभु समुहा सूर जोइस मिली कंचनमय बीजो दूरंग। रयण कोशिसां सरिसां हो समश्रेणिं सोहें चिहुं दिशें बीजो रत्नमय सूरंग ॥२॥ चंद सूरय गह पमुहा हो प्रभु समूहा सूर जोइस मिली - ए आंकणी ॥ वेमाणिय सरराय वर हो बह मणीनां कोशीसां करें उंची भिंत धणशत पंच । वित्थारपणे तेतीस धणुं हो अनें उपर बत्रीस
अंगुल देव करें शुभ संच ॥३॥ चंद० षट्शत धनूषनें मानें हो एक कोशनो त्रिण गढ
विचे अंतरो रत्नमय पोलि तिहां च्यार । धरतीथी पावडीयां हो दस सहस ओलंघी
आवतां तिहां रूप्यगढनी पोल द्वार ॥४|| चंद० रूपाना गढनी पोलिथी हो समीभूई पंचास ध आगें पंच सहस्स सोपान । कंचन गढनी द्वारथी हो अवकमीइं पंचास
धणूं वली तिहां पंच सहस निदान ||५|! चंद० रत्नगढना द्वार मुखथी हो मांहिं जातां तिन्नि
__ सय धणू ए फरती समी भूमि । ते आगे गाउ एकनो हो मनोहर मणीपीठ कह्यो
ते विचिं देवछंदो सोम्य ॥६॥ चंद० नव नव सें धणुं पुर्व पर छंडी हो दिल मंडी
पीठ बीजो करें बेसें धणुं लंब पोहोलो तेम । उंचो जिनदेहनें मानें हो ते बेंसवानो मणीपीठ
हुई वली सुणो भवि एम ||७| चंद० तिहां चार द्वार उदारा हो अति सोहें त्रिण
त्रिण पगथालीयां चार दिशें सिंहासन चार ।
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तेह विचि देवचं (छं) दो हो तिहां वृक्ष अशोक
जोयण एक झाझोरो हो समोसरण उपरि
बार गूणो जिन देहथी ऊंचो सार ||८|| चंद०
चार दिशें सिंहासन फिरता हो तिहां जीननी
छाइ रह्यो एह अशोक तलें देवपीठ |
चार सिंहासन उपरि हो विराजीत छत्र त्रिण
बेठक रलीआमणी वली चार निंचा पादपीठ ॥९॥ चंद०
अनुसन्धान- ३८
झलकता जिनरूप समत्रिण बिंब |
श्वेत चामर विजाता हो प्रभु चिहुं पासें बें बें
शोभता भामंडल चार पूठि अविलंब ॥ १०॥ चंद० धर्मचक्र चिहुं दिशें जिन आगे हो सोवन कमल में
गगनें फरें धजछत्रादि मंगलीक आठ ।
मणीमें थंभें पूतलीउं हो नृत्य करती वरदाम
मणिमे द्वारे चारे हो ते तोरण त्रिण त्रिण
वेदिका चिहुं द्वारें मंगल पाठ ||११|| चंद०
हुईं धूप व्यंतरीक उघाहंत ।
जोयण एक सहस प्रमाण हो इंद्र ध्वज दंड उपरि लहकतो चार धजा चिहुं दिशि सोहंत ॥ १२ ॥ चंद० समभूतल धरणीथी हो अति उंचो अढी
कोश भण्यो ए समोसरणनो मान ।
ऋषभादि वीर पर्यंत हो ए सघलो निज निज
करें जाणवो त्रीहुं गढई वास सहस सोपान || १३ || चंद० रत्नगढ़ बाह्य ईशानें हो देवछंदो मणीनो सूरें
करें तिहां जिनने वीसामा ठाम ।
थलयर तिर्यंच खयरा हो वली जलचर बीजें
गढ निसूणे देशना चउपय बेंसें हित काम ||१४|| चंद० ( बीजें गढ़ें बेसे अभिराम)
वाहन सुखासन पालखी हो पहेलें गढ ठवि रंगस्यूं चोखुणे दो दो वावि ।
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अनई वाटलें समोसरणें हो चिहुं खुणें वावि
एकेकी हुई वली सुणो सूरभाव ॥१५॥ चंद० भवणा व्यंतर वेमाणिय हो ए सूर रत्नगढना
पोलिया वर्णे पीत धवला रत स्याम । धनूं दंड पास अनें गदा हो ए हस्ते
आयुध सूर धरें सोमयमवरुणादिनाम ॥१६।। चंद० ए चार यक्ष पहेंला गढना हो अनुक्रमे द्वारपाल
कह्या बीजें चार देवी रखवाल। सूरा देव त्रीजा गढ बाहिर हो पुर्वादिक द्वारना
पोलीया तुंबरुं नामे देव मयाल ॥१७॥ चंद० सामान्य समोसरणे हो एहवी विध सघली
____ जाणवी जो आवे को महद्धिक देव । तो स्वयमेव एकाकी हो समोसरण एह
विध सुं करे ए विगत कही संखेव ||१८|| चंद० हवें इंद्रादिक आग्रहथी हो श्री श्रेयांश मही
पावन करें आवें देव चंदा समीप । समोसरणे पुर्व दिशथी हो ते मांडि प्रदिक्षण
त्रिण दिई पूर्व मुखें त्रिभूवनीप !॥१९॥ चंद० नमो तिथ्थस्स मुख भाषई हो जिन दाखें
अमृत देशना सुणे देवमणू तिर्यंच । जोजन प्रमाण जिणंदनी हो भजी वाणी गुहरी
गाजति संदेह न राखें एक रंच ॥२०॥ चंद० साधु वैमानिक देवी हो वली साधवी ए त्रिण
. पर्षदा अग्नि कूणे बेसई विनित । जोइस भवणा व्यंतर हो ए त्रिहुंनी देवी
नैऋते कूणें बेंसें सू प्रवीत ॥२१॥ चंद० भवणा व्यंतर जोइस हो ए त्रिक सूर वाय
कुणे सांभलई इत्यादिक सभा हुइ नव ।
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वैमानिक सूर मनुष्य ज हो वली मणु
स्त्री ईशांनें बेंसीनें सफल करें मणु भव ||२२|| चंद० चार निकायनी देवी हो जिन सेवी अने
नर अनें नर ललना हो वली चार निकायना
वली साधवी ए उभी सूर्णे परषदा पंच ।
देवता सातमें साधु दूख न हे रंच ? ||२३|| चंद० इत्यादिक सात पर्षद हो रत्नगढे बेसी सांभले ए आवश्यक वृत्ति अधिकार । हवें आवश्यक चूर्णे हो मन पूर्णे भवि
सांभलो अज्जा- विमाणदेवी उदार ||२४|| चंद०
ए बें परषद उभी हो नित सांभलें प्रभुनी देशना
बेठी सांभलें वाणी हो हीत आणी प्राणी
वार्जित्र कोडाकोडि हो गयणमें अणवायां
कई समकित पामी हो शिरनामी प्रभू वांदी
चित्तमें न हे वयर में भूख तरस ॥ २५ ॥ चंद०
चोत्रीस अतिशय शोभित हो जिन अढार
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अनुसन्धान- ३८
अष्ट महाप्रातिहारिज हो विराजित जाणे
वले बारे परषदा जिनने आदेश ||२६|| चंद०
प्रभुने छौतेर ७६ गणधर हो कौस्तुभनामा
शेष गणधरादि पर्षदा दश ।
वाजें दानशीलादि द्ये उपदेश ।
दोष रहितपणें पांत्रीस वाणी गुणसार ।
दीनमणी सूणो गणधर परिवार ||२७|| चंद०
धारणी नामा साधवी हो एक लाखने त्रिण
सहस कही तृपूष्ट नामा वासुदेव नृप सार ||२८|| चंद० श्रावक संख्या बे लाख ने हो उगण्यासी सहस
चार लाख ने उपरि हो अडतालीस सहस
आदि करी चौरासी सहस साधु परिवार ।
ते भण्या श्राविसंख्या सूणो धरी नेह ।
इम कही छौंतर ७६ गछ संख्या एह ||२९|| चंद०
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शासन सानिधकारि हो व्रतधारी यक्ष मनुखेश्वर
श्रीवत्सादेवी संघ रखवाल ।
इत्यादिक गुणधामी हो तम वामी जिन इग्यारमो विशेष कहे प्रभूजी दयाल ||३०|| चंद० ॥ सर्वगाथा
७९ ॥
॥ दूहा ॥ गृहस्थावास भगवंत तणो त्रिस द्वि लाख ते वर्ष ।
लाख एकवीस केवल पणें बई मास उणें उत्कर्ष ॥१॥ वर्ष लाख चोरासि आउखुं पूर्ण थये जिनराज ।
अणसण करे मन उजमें शिव वधू वरवा काज ॥२॥ श्रावण वदि तृतीया दिनें श्री श्रेयांश जिनवीर ।
एक सहस साधु सहित मास भक्त वड वीर ॥३॥ समेत शिखर नग्ग उपरि काउसग्ग मुद्राई देव ।
शुक्लध्याने मोक्षे गया निर्वाणोत्सव सूर करे हेव ||४|| जिन प्रतिमा नित पूजतां सिझें वांछित काम
इंम जाणि केइ भवि जना बिंब भरावें तुम नाम ॥५॥ गुर्जरदेशे पत्तन नयर तिहां वणिक वसे ओसवाल ।
बुहड साखा दीपति गोठि गोत्र रसाल ||६|| सोनी ठाकरसी तस प्रिया नगाई सूत रायमल्ल | बिंब भरावें अभिनवुं भावना भावे भल्ल ||७||
ढाल
आरा माहिं ओरडी ललना तिहां किण हो
बाजोठ ढलाव हरणी जव चरें ललना ए देशी विचरंता महिमंडले ललना, पउधार्या हो पीराण पटण मझारि, करें भवि वंदना ललना । सोनी रायमल्ल नेहथी ललना, निजधर तेडी हो तघगछ गणधार, पूजें पद अरिवृंदना ललना ॥१॥ संवत सोल अडसठ ललना, वैशाख वद हो छठ गुरुवार, क० ।
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अनुसन्धान-३८
श्रीविजयसेनसूरि निज करे ललना,
बिंब प्रतिष्ठे हो श्रीश्रेयांस आधार, पू० ॥२॥ तिहां प्रभू बिंब बहु दिन रह्यु ललना,
महिमावंत हो पूजा सत्तर प्रकार, क० । एकसो चौदउ हो वर्ष अभिराम, तेहवें वागड देशमां,
आडिसर नयर हो सुखठाम, पू० ॥३॥ नवो देवल संघे तिहां कर्यो ललना,
__ मूलनायक हो प्रतिमा नहें एक, क० । इम विचारी पाटणथी ललना,
पधरावो हो संघ राखेवा टेक, पू० ॥४॥ संवत सतर ब्यासीइं ललना,
__ श्रावण सूदि हो पंचमी वार सोम, क० । शुभ दिन महुरत थापीउं ललना,
खेला रस हो नृत्य करता भूमि, पू० ॥५॥ ढोल निसांण ते वाजतें ललना,
गावे गोरी हो मधू स्वरगीत, क० ! इम अनेक आडंबरें ललना,
बेसार्या हो देहरें सुभ रीत, पू० ॥६॥ बावना चंदन घन घसी ललना,
केशर सूकड हो माहि रंगरोल, क० । घाली कचोलें पूजा करें ललना,
भावें भावना हो फरति ओलाओलि, पू० ॥७॥ तुं माता तुं ही पीता ललना,
तु ही बंधु हो जगपालक नाम, क० ।। भवसायरथी मुज उधरो ललना,
अविनाशी हो सुख दीजें धाम, पू० ॥८॥ मुज अपराधी सम जना ललना,
तिं तार(रि)या हो नरनारिना कोडि, क० । हिव राखी सेवक भणी ललना,
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________________ जान्युआरी-2007 45 लखचोरासि हो अवतरण छोडि, पू० // 9 // सितरसो ठाणा बोल जोईने ललना, देवेंद्रसरि हो चरित अविलोय, क० / आवश्यक वृत्ति अनुसारथी ललना, __ मि गुंथ्या हो बोल निरबुद्धि होय, पू० // 10 // एहमां ओछु अधिकुं कर्तुं ललना, विचारी हो शुद्ध करयो विद्वान, क० / श्रीश्रेयांश शासन प्रतपयो ललना, __ मंदिरगिरि हो वली गगनें भाण, पू० // 11 // पंडित चतुरसागर गुरु शोभता ललना, तस शिशु हो लालसागर विनित, क० / तस पदकमल ..... ..... सम ललना, विशेष कहे हो..... पू० // 12 // वेदांक संयम संवते ललना, आसो सित हो दशमी रहिय चोमास, क० / आडीसरना संघनी ललना, श्रीवत्सादेवी हो तुम पुरेयो आस, पू० // 13 / / // कलश // इम थुण्यो जिनवर भक्ति निर्भर एकादशम अरिहंत ए। आडिसर मंडण भयविहंडण सिधरंजन भगवंत ए // तस(प) गच्छनायक सुमतिदायक श्रीविजयक्षेमसूरीस ए / तस पट्ट प्रभकर तेज दिनकर श्रीविजयदयासूरि ईश ए // 1 // तस गच्छ राजें अतिसकानें श्रीकूशलसागर वाचकवरो / तस शिस पंडित सगुण मंडित उत्तमसागर श्रुतधरो // . तस चरण सेव बुद्धि चतुर गुण निधि तस शिश पंडित लाल ए। तस शिश एम विशेष जंपें प्रभु गुण भणे ते मंगल माल ए // 2 // .. // सर्वगाथा - 101 // // इति श्रेयांश जिनस्तवन समाप्त / /