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वैमानिक सूर मनुष्य ज हो वली मणु
स्त्री ईशांनें बेंसीनें सफल करें मणु भव ||२२|| चंद० चार निकायनी देवी हो जिन सेवी अने
नर अनें नर ललना हो वली चार निकायना
वली साधवी ए उभी सूर्णे परषदा पंच ।
देवता सातमें साधु दूख न हे रंच ? ||२३|| चंद० इत्यादिक सात पर्षद हो रत्नगढे बेसी सांभले ए आवश्यक वृत्ति अधिकार । हवें आवश्यक चूर्णे हो मन पूर्णे भवि
सांभलो अज्जा- विमाणदेवी उदार ||२४|| चंद०
ए बें परषद उभी हो नित सांभलें प्रभुनी देशना
बेठी सांभलें वाणी हो हीत आणी प्राणी
वार्जित्र कोडाकोडि हो गयणमें अणवायां
कई समकित पामी हो शिरनामी प्रभू वांदी
चित्तमें न हे वयर में भूख तरस ॥ २५ ॥ चंद०
चोत्रीस अतिशय शोभित हो जिन अढार
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अनुसन्धान- ३८
अष्ट महाप्रातिहारिज हो विराजित जाणे
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वले बारे परषदा जिनने आदेश ||२६|| चंद०
प्रभुने छौतेर ७६ गणधर हो कौस्तुभनामा
शेष गणधरादि पर्षदा दश ।
वाजें दानशीलादि द्ये उपदेश ।
दोष रहितपणें पांत्रीस वाणी गुणसार ।
दीनमणी सूणो गणधर परिवार ||२७|| चंद०
धारणी नामा साधवी हो एक लाखने त्रिण
सहस कही तृपूष्ट नामा वासुदेव नृप सार ||२८|| चंद० श्रावक संख्या बे लाख ने हो उगण्यासी सहस
चार लाख ने उपरि हो अडतालीस सहस
आदि करी चौरासी सहस साधु परिवार ।
ते भण्या श्राविसंख्या सूणो धरी नेह ।
इम कही छौंतर ७६ गछ संख्या एह ||२९|| चंद०
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