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अनुसन्धान-३८
श्री श्रेयांसजिन स्तवन
सं. उपाध्याय भुवनचन्द्र आ दीर्घ स्तवनकृतिनी हस्तप्रति राधनपुरना विजयगच्छना ज्ञानभण्डारमा छे. फोटोकोपी करावती वखते पोथी-प्रतकमांक नोंधवानुं रही गयुं छे.
रचनावर्ष १७९४ छे. रचयिता पण्डित अथवा पंन्यास विशेषसागर छे. तेमनी गुरुपरम्परा कृतिना अन्तभागमां आपेली छे : विजयक्षमासूरिविजयदयासूरि-वाचक कुशलसागर-पण्डित उत्तरसागर-चतुरसागर-पण्डित लालसागर -विशेषसागर. हस्तप्रतमां 'विजयक्षेमसूरि' लखेलुं छे, परन्तु तपागच्छनी पट्टावलीमा 'विजयक्षमासूरि' जोवा मळे छे.
सांतलपुरना मार्गे कच्छ-वागडमां प्रवेश करतां सर्वप्रथम गाम आडीसर आवे छे. अहीं श्री श्रेयांसनाथ भगवाननुं देरासर हतुं. मूलनायक श्रीश्रेयांसनाथ भगवाननी प्रतिमा अने प्रतिष्ठा विशे प्रस्तुत रचना सुन्दर प्रकाश पाडे छे. पाटणना सोनी रायमल्ले श्री विजयसेनसूरिना हस्ते आ प्रतिमानी प्रतिष्ठा सं. १६६८मां करावेली., आ बिम्ब पाटणमा एकसो चौद वर्ष रह्यु. आडीसरना संघे नवं देरासर बंधाव्यु. मूलनायकनी प्रतिमानी जरूर हती, ते माटे सेठ रायमल्लनी भरावेली प्रतिमा पाटणथी लाववामां आवी. सं. १७८२ मां मोटी धामधूम साथे प्रतिष्ठा करवामां आवी. स्तवनमां आ प्रतिष्ठा उत्सवनं वर्णन नथी आपवामां आव्युं परंतु बिम्ब भरावनार श्रेष्ठिनो परिचय विशेषरूपे अपायो छे : ओसवाल वंश, बूहड शाखा, गोठि गोत्र, सोनी रायमल्ल ठाकरसी, भार्या नगाई. स्तवनमां श्रीश्रेयांसनाथ प्रभुना जीवनना प्रसंगोनुं काव्यमय वर्णन छे. एक-बे स्थले पंक्तिओ सुधारीने लखवामां आवी छे, तेथी कदाच आ प्रति मूलादर्श प्रति होय.
श्रीश्रेयांसनाथ भगवाननुं देरासर भूकम्पमा ध्वस्त थयुं छे, प्रतिमाजी सलामत छे अने नूतन मन्दिरमा हवे पुनः प्रतिष्ठा थई छे. जो के मुख्य जिनालय घणा समयथी श्रीआदीश्वर भगवाननुं गणाय छे.
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