Book Title: Shreyans Jin Stava
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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जान्युआरी-2007
शासन सानिधकारि हो व्रतधारी यक्ष मनुखेश्वर
श्रीवत्सादेवी संघ रखवाल ।
इत्यादिक गुणधामी हो तम वामी जिन इग्यारमो विशेष कहे प्रभूजी दयाल ||३०|| चंद० ॥ सर्वगाथा
७९ ॥
॥ दूहा ॥ गृहस्थावास भगवंत तणो त्रिस द्वि लाख ते वर्ष ।
लाख एकवीस केवल पणें बई मास उणें उत्कर्ष ॥१॥ वर्ष लाख चोरासि आउखुं पूर्ण थये जिनराज ।
अणसण करे मन उजमें शिव वधू वरवा काज ॥२॥ श्रावण वदि तृतीया दिनें श्री श्रेयांश जिनवीर ।
एक सहस साधु सहित मास भक्त वड वीर ॥३॥ समेत शिखर नग्ग उपरि काउसग्ग मुद्राई देव ।
शुक्लध्याने मोक्षे गया निर्वाणोत्सव सूर करे हेव ||४|| जिन प्रतिमा नित पूजतां सिझें वांछित काम
इंम जाणि केइ भवि जना बिंब भरावें तुम नाम ॥५॥ गुर्जरदेशे पत्तन नयर तिहां वणिक वसे ओसवाल ।
बुहड साखा दीपति गोठि गोत्र रसाल ||६|| सोनी ठाकरसी तस प्रिया नगाई सूत रायमल्ल | बिंब भरावें अभिनवुं भावना भावे भल्ल ||७||
ढाल
आरा माहिं ओरडी ललना तिहां किण हो
बाजोठ ढलाव हरणी जव चरें ललना ए देशी विचरंता महिमंडले ललना, पउधार्या हो पीराण पटण मझारि, करें भवि वंदना ललना । सोनी रायमल्ल नेहथी ललना, निजधर तेडी हो तघगछ गणधार, पूजें पद अरिवृंदना ललना ॥१॥ संवत सोल अडसठ ललना, वैशाख वद हो छठ गुरुवार, क० ।
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