Book Title: Shreyans Jin Stava Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ 42 वैमानिक सूर मनुष्य ज हो वली मणु स्त्री ईशांनें बेंसीनें सफल करें मणु भव ||२२|| चंद० चार निकायनी देवी हो जिन सेवी अने नर अनें नर ललना हो वली चार निकायना वली साधवी ए उभी सूर्णे परषदा पंच । देवता सातमें साधु दूख न हे रंच ? ||२३|| चंद० इत्यादिक सात पर्षद हो रत्नगढे बेसी सांभले ए आवश्यक वृत्ति अधिकार । हवें आवश्यक चूर्णे हो मन पूर्णे भवि सांभलो अज्जा- विमाणदेवी उदार ||२४|| चंद० ए बें परषद उभी हो नित सांभलें प्रभुनी देशना बेठी सांभलें वाणी हो हीत आणी प्राणी वार्जित्र कोडाकोडि हो गयणमें अणवायां कई समकित पामी हो शिरनामी प्रभू वांदी चित्तमें न हे वयर में भूख तरस ॥ २५ ॥ चंद० चोत्रीस अतिशय शोभित हो जिन अढार ▾ अनुसन्धान- ३८ अष्ट महाप्रातिहारिज हो विराजित जाणे Jain Education International वले बारे परषदा जिनने आदेश ||२६|| चंद० प्रभुने छौतेर ७६ गणधर हो कौस्तुभनामा शेष गणधरादि पर्षदा दश । वाजें दानशीलादि द्ये उपदेश । दोष रहितपणें पांत्रीस वाणी गुणसार । दीनमणी सूणो गणधर परिवार ||२७|| चंद० धारणी नामा साधवी हो एक लाखने त्रिण सहस कही तृपूष्ट नामा वासुदेव नृप सार ||२८|| चंद० श्रावक संख्या बे लाख ने हो उगण्यासी सहस चार लाख ने उपरि हो अडतालीस सहस आदि करी चौरासी सहस साधु परिवार । ते भण्या श्राविसंख्या सूणो धरी नेह । इम कही छौंतर ७६ गछ संख्या एह ||२९|| चंद० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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