Book Title: Shreyans Jin Stava
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
44
अनुसन्धान-३८
श्रीविजयसेनसूरि निज करे ललना,
बिंब प्रतिष्ठे हो श्रीश्रेयांस आधार, पू० ॥२॥ तिहां प्रभू बिंब बहु दिन रह्यु ललना,
महिमावंत हो पूजा सत्तर प्रकार, क० । एकसो चौदउ हो वर्ष अभिराम, तेहवें वागड देशमां,
आडिसर नयर हो सुखठाम, पू० ॥३॥ नवो देवल संघे तिहां कर्यो ललना,
__ मूलनायक हो प्रतिमा नहें एक, क० । इम विचारी पाटणथी ललना,
पधरावो हो संघ राखेवा टेक, पू० ॥४॥ संवत सतर ब्यासीइं ललना,
__ श्रावण सूदि हो पंचमी वार सोम, क० । शुभ दिन महुरत थापीउं ललना,
खेला रस हो नृत्य करता भूमि, पू० ॥५॥ ढोल निसांण ते वाजतें ललना,
गावे गोरी हो मधू स्वरगीत, क० ! इम अनेक आडंबरें ललना,
बेसार्या हो देहरें सुभ रीत, पू० ॥६॥ बावना चंदन घन घसी ललना,
केशर सूकड हो माहि रंगरोल, क० । घाली कचोलें पूजा करें ललना,
भावें भावना हो फरति ओलाओलि, पू० ॥७॥ तुं माता तुं ही पीता ललना,
तु ही बंधु हो जगपालक नाम, क० ।। भवसायरथी मुज उधरो ललना,
अविनाशी हो सुख दीजें धाम, पू० ॥८॥ मुज अपराधी सम जना ललना,
तिं तार(रि)या हो नरनारिना कोडि, क० । हिव राखी सेवक भणी ललना,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12