Book Title: Shreyans Jin Stava Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ जान्युआरी-2007 अनई वाटलें समोसरणें हो चिहुं खुणें वावि एकेकी हुई वली सुणो सूरभाव ॥१५॥ चंद० भवणा व्यंतर वेमाणिय हो ए सूर रत्नगढना पोलिया वर्णे पीत धवला रत स्याम । धनूं दंड पास अनें गदा हो ए हस्ते आयुध सूर धरें सोमयमवरुणादिनाम ॥१६।। चंद० ए चार यक्ष पहेंला गढना हो अनुक्रमे द्वारपाल कह्या बीजें चार देवी रखवाल। सूरा देव त्रीजा गढ बाहिर हो पुर्वादिक द्वारना पोलीया तुंबरुं नामे देव मयाल ॥१७॥ चंद० सामान्य समोसरणे हो एहवी विध सघली ____ जाणवी जो आवे को महद्धिक देव । तो स्वयमेव एकाकी हो समोसरण एह विध सुं करे ए विगत कही संखेव ||१८|| चंद० हवें इंद्रादिक आग्रहथी हो श्री श्रेयांश मही पावन करें आवें देव चंदा समीप । समोसरणे पुर्व दिशथी हो ते मांडि प्रदिक्षण त्रिण दिई पूर्व मुखें त्रिभूवनीप !॥१९॥ चंद० नमो तिथ्थस्स मुख भाषई हो जिन दाखें अमृत देशना सुणे देवमणू तिर्यंच । जोजन प्रमाण जिणंदनी हो भजी वाणी गुहरी गाजति संदेह न राखें एक रंच ॥२०॥ चंद० साधु वैमानिक देवी हो वली साधवी ए त्रिण . पर्षदा अग्नि कूणे बेसई विनित । जोइस भवणा व्यंतर हो ए त्रिहुंनी देवी नैऋते कूणें बेंसें सू प्रवीत ॥२१॥ चंद० भवणा व्यंतर जोइस हो ए त्रिक सूर वाय कुणे सांभलई इत्यादिक सभा हुइ नव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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