Book Title: Shreyans Jin Stava
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ जान्युआरी-2007 ॥ श्रीमत् सद्गुरुभ्यो नमः ॥ ॥हा॥ ऋषभ जिन मंगल करण परम सौख्य दातार । प्रथम तेह जिनवर नमो जगगुरु जगदाधार ॥१॥ तुं वरदाई सारदा तुझ मुखडुं इंदु समान । वीणा पुस्तक सोहती घें मुझ वचन रसान ॥२॥ मुझे गुरु चरणकमल नमुं जे श्रुतज्ञान दातार । श्री श्रेयांस प्रभुने स्तवुं जस गुण परम अपार ||३|| ढाल - Jain Education International १ मथुरानगरीनी मालणी - ए देशी पुष्करवर नग्ग दीपतो ए तो पूर्ववर दीव मझार हो जी (जि) न ओल शुभ भावसुं ॥ ए आंकणी ॥ शीता नदी दक्षण दिशे ए तो रमणिज विजय सुखकार हो ॥१॥ जी० तिहां नगरी शुभापुरी, ए तो मानूं लंक समान हो जि० राज करे वसुधापति, नलनीगुल्म नृप ते राजन सवें सुख भोगवें ए तो जोगवे मन वयराग हो । जि० तिहां वज्रदत्त गुरू आव्या सुगी ए तो वांदवा जाई महाभाग हो || ३ || जि० अमृतमय सुणि देशना ए तो लीधों संयमभार हो । जि० अभिधान हो || २ || जी० शुभ भावें तप करें आकरा इग्यार अंग पाठक धार हो ||४|| जी० एणि विधे चारित्र पालीनें तिहां कतिचित गोत्रे करी काल हो । जि० अच्युत देवलोकें ऊपना तिहां बावीस सागर आयु पाल हो ||५|| जि० बारमा सुरलोकथी चवें ए तो देवस्थितिनो करें अंत हो । जि० जेठ वदि छठि दिने श्रवण नक्षत्रई शुभ शंत हो ॥६॥ जि० मकर राशि आव्ये कौमुदी मध्याह्न निशि समें ताम हो । जि० देशविशेषमें दीपती सिंहपुरी कंचनमय धाम हो ||७|| जि० तेह नगरीनो राजीओ ए तो विष्णु भुपति कृपाल हो । जि० तस घरि सूरललना जिसि काई विष्णुदेवी पतिव्रतापाल हो ॥८॥ जि० 35 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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