Book Title: Shreyans Jin Stava Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ अनुसन्धान-३८ दंपति विषयक सुख भोगवें कांई जोगवें राम जिम शीत हो । जी० एक दिन परम आनंदसुं सुख सेजें पोढ्यां नहि भि(भी)त हो ॥९॥ जि० चउद सुपन देखें भला ए तो विष्णुदेवी महामन्न हो । जि० तेहवि सूरलोकथी चवी प्रभु विष्णुमाता कुखें ऊतपन्न हो ॥१०॥ लीलाई सुपन देखी करी संभलावें निज पति पास हो । जि० निजमति अनुसारें कहे सुत होसे त्रिलोकी प्रकाश हो ॥११॥ जि० अनुक्रमे गर्भ वधतें थके पुर्ण हुआ शुभ नव मास हो । जि० उपरि षट् दिन व्यतिक्रम्यई फागुण वदि द्वादशी खास हो ॥१२।। जि० अद्ध निशि श्रवण नखत्ते मकरे स्थित रोहिणी कंत हो । जि० तेहवें जिनजी जनमीया तिहां वरत्या शुभ विरतंत हो ॥१३।। जि० जन्म कल्याणक सुर करें सोहंमादि चोसठि इंद हो । जि० तिम निज पूरी शिणगारिने जन्मोत्सव करई नरेंद हो ॥१४॥ जि० असूचि टालीनें नाम ठवें श्रेयांस कुमर दयाल हो । जि० बुध चतुरसागर गुरु सेवथी शिश कहें जिनगुण रसाल हो ॥१५॥ जि० ॥सर्वगाथा-१८ ॥ ॥ दूहा ॥ अविनासी इग्यारमो मतिश्रुतअवधि निधान । जन्मजात त्रय ज्ञानमय तारण भवनिधि सोपान ॥१॥ पंच धावि लालिजतां वधे जिम सूरतरू छोडि ।। दिन दिन कोडि वधामणी सूरनर करें मन कोडि ॥२॥ इक्षा वंशें उपना काश्यप गोत्रं सदैव । सोवनवान देह जलहलें लंछन खडगी अतिव ॥३॥ एक सहस नई अड अधिक लक्षण अंगें जगीश । उछेह अंगुल इंसी धनुष आत्मंगुल एकसो वीस ॥४॥ अनंत बल लक्षण अधिक जोवन वय जब लीध । __ मातपिता अति नेहसुं विवाह सामग्रि कीध ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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