Book Title: Shildutam Author(s): Charitrasundar Gani, Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में जैनाचार्यों का अवदान महत्त्वपूर्ण है। संस्कृत साहित्य की प्रत्येक विधा पर उन्होंने कलम चलायी है। दूतकाव्यों के क्षेत्र में भी उन्होंने अनेक रचनाएं प्रस्तुत की हैं। इनमें जैन मेघदूत, शीलदूत आदि प्रसिद्ध हैं। जहाँ जैन मेघदूत में राजुल और नेमि का संवाद वर्णित है वहीं शीलदूत में स्थूलिभद्र और कोशा वेश्या का संवाद है। जैनाचार्यों की विशेषता यह है कि उनहोंने साहित्य के क्षेत्र में श्रृंगार की अपेक्षा वैराग्य को अधिक प्रमुखता दी है। शीलदूत भी एक शान्तरसपरक रचना है, जिसमें कोशा के प्रणय निवेदन की निष्पत्ति वैराग्य में रूपान्तरित होती है। शीलदूत चारित्रसुन्दर गणि की रचना है। यद्यपि यह ग्रन्थ मूलरूप में शाह हरकचन्द भूराभाई के द्वारा सन् 1912 में बनारस से प्रकाशित हुआ था। उसके पश्चात् इसका कोई संस्करण नही निकला। इस मूल ग्रन्थ का सम्पादन पं. हरगोबिन्ददास जी एवं पं. बेचरदास जी द्वारा हुआ था। इसके पश्चात् इसका कोई अन्य संस्करण निकला हो तो यह हमें ज्ञात नहीं। साध्वी श्री प्रमोद कुमारी जी जब अपने शोधकार्य के सन्दर्भ में वाराणसी आईं थीं तब उन्होंने संस्कृत के अध्ययन में अपनी रुचि प्रकट की। हमने उनसे शीलदूत के अध्ययन एवं अनुवाद के लिए निवेदन किया तदनुसार वे पं. ब्रह्मानन्द चतुर्वेदी के सहयोग से इस ग्रन्थ का अनुवाद करने लगीं। यद्यपि पं. ब्रह्मानन्द चतुर्वेदी जी के सहयोग से उन्होंने इस कार्य को पूर्ण किया, किन्तु अभी इसके संशोधन एवं सम्पादन की महती आवश्यकता थी। इस हेतु मैंने अपने सहयोगी डॉ. अशोक कुमार सिंह और डॉ. दीनानाथ शर्मा से अनुरोध किया तदनुसार उन्होंने अनुवाद को प्रकाशन योग्य बनाने के लिए उसका संशोधन किया। जब यह प्रयास चल ही रहा था, तब संस्कृत और प्राकृत के परम्परागत विद्वान पं. विश्वनाथ जी पाठक संस्थान से जुड़े मैंने इस ग्रन्थ को प्रकाशन योग्य बनाने का दायित्व उन्हें सौंपा। पं. जी ने पर्याप्त परिश्रम करके न केवल पूर्व अनुवाद का संशोधन किया अपितु आवश्यकतानुसार नया अनुवाद भी किया। इस प्रकार ग्रन्थ को प्रकाशन की दृष्टि से पूर्ण किया गया। इस प्रकार इस ग्रन्थ में साध्वीजी के अतिरिक्त अन्य विद्वानों का भी अवदान कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। प्रकाशन की इस बेला में हम साध्वीजी सहित उन सभी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। इस ग्रन्थ की कम्पोजिंग श्री बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने किया और प्रूफ-संशोधन का कार्य पं. विश्वनाथ जी पाठक और डॉ. अशोक कुमार सिंह ने किया, अतः हम पुनः इन तीनों के प्रति अपना आभार ज्ञापित करते - भूपेन्द्रनाथ जैन मन्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 48