Book Title: Shildutam
Author(s): Charitrasundar Gani, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 14
________________ शीलदूतम् मन उपशम या निर्वेद की अनुभूति में तल्लीन नहीं होता है अतः अनेक विद्वानों के द्वारा उसे शान्तरस प्रधान काव्य घोषित करना उचित नहीं लगता। । प्रस्तुत काव्य में स्थूलभद्र और कोशा विचारों के दो प्रतिकूल धरातलों पर स्थित हैं। दोनों के वैचारिक संघर्ष में स्थूलभद्र की विजय और कोशा की उपशान्ति ही काव्य के प्रतिपाद्य विषय हैं। अतः कवि को स्थूलभद्र के निर्वेद को अधिक महत्व देना था, किन्तु उसने कोशा के रति-भाव को ही भूरिशः पल्लवित किया है। इस से शान्तरस की अंगीरस के रूप में प्रतिष्ठा नहीं हो पाई, जो कि काव्य शास्त्रीय दृष्टि से अपेक्षित थी। ___ शान्त और श्रृंगार दोनों विरोधी रस है। परन्तु उनकी भिन्नाश्रयता और अंगांगिभाव में विरोध नहीं है। आचार्य आनन्दवर्धन ने लिखा है कि किसी भी विरोधी रस का अंगीरस (प्रधान रस) की अपेक्षा अधिक परिपोष करना अनुचित है। अंगभूतरस (अप्रधान रस) के परिपोष में न्यूनता होनी चाहिये। यदि शान्त रस अंगी हो तो श्रृंगार का और श्रृंगार अंगी हो तो शान्त का परिपोष न्यून कर देना चाहिये। परन्तु कवि ने अप्रधान रस विप्रलम्भ श्रृंगार का परिपोष अधिक कर दिया है। इस स्खलन का प्रमुख कारण पादपूर्ति की विवशता है। घोर श्रृंगार में डूबे मेघदूत के श्लोकों की पादपूर्ति में शान्तरस के लिये कहीं भी स्थान नहीं था। कवि ने अपनी प्रतिभा से उसके लिये भी कुछ स्थल खोज लिये हैं। यही क्या कम है ? विप्रलम्भ श्रृंगार के परिपाक और पादपूर्ति की सफलता की दृष्टि से शीलदूत का संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। - आचार्य विश्वनाथ पाठक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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