Book Title: Shildutam
Author(s): Charitrasundar Gani, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 35
________________ ७७. जहाँ आकाश में शीघ्र चलता हुआ सूर्य नित्य शंका करता है कि कहीं इन गगनचुम्बी सौधों पर मेरा रथ स्खलित न हो जाये और जहाँ धुएँ की आकृति धारण करने में कुशल मेघ अत्युन्नत भवनों से टकरा कर टुकड़े-टुकड़ें होकर दूर निकल जाते हैं। यान्त्यो व्योम्नि त्रिदशललना वीक्ष्य यासां स्वरूपं सर्व गर्व मनसि रचितं थारुतायास्त्यजन्ति । मुग्धा दुग्धोपचितवपुषः कुट्टिमेष्वस्तखेदं संक्रीडन्ते मणिभिरमरप्रार्थिता यत्र कन्याः ।। ७८ ।। ७८. जहाँ दुग्ध के समान गौर और पुष्ट शरीर वाली देवताओं के द्वारा प्रार्थित वे मुग्धाकन्यायें फर्शो पर बिना थके, मणियों से खेलती रहती हैं, जिन का रूप देख कर आकाश में जाती हुई देवांगनायें मन में स्थित, सुन्दरता का सम्पूर्ण गर्व त्याग देती हैं। धर्मस्वेदं सुरतजनितं योषितां यत्र रात्रौ जालायातैः स्वगृहवलभीमध्यबद्धस्थितीनाम् । सारैस्ताराधिपतिकिरणैश्थ्योतिता द्योतिताशैर्ष्यालुम्पन्ति स्फुटजललवस्यन्दिनश्चन्द्रकान्ताः । ।७८ । ७८. जहाँ रात्रि में झरोखों से आई हुई दिशाओं को उद्योतित करने वाली, मनोरम चन्द्रकिरणों के द्वारा पिघल कर प्रत्यक्ष जल-बिन्दु टपकाने वाली चन्द्रकान्त मणियाँ, अपने भवन के छत पर स्थित कामिनियों का सुरत- जन्य प्रस्वेद दूर कर देती हैं। काले वर्षन्नवनिवलयं सस्यपूर्ण वितन्वन् वाञ्छातुल्यं दिशति सलिलं यत्र धाराधरोऽपि । त्यागो यस्यां धनिभिरनिशं दीयमानोऽर्थिनां द्रा गेकं सूते सकलमबलाSS मण्डनं कल्पवृक्षः ।।८० 1 ८०. जहाँ मेघ भी समय पर बरसते हुये एवं धरा को शस्यों से परिपूर्ण करते हुये इच्छानुकूल जल देता है। जहाँ सदा धनियों के द्वारा दिया जाता हुआ दान- रूपी कल्प- वृक्ष शीघ्र याचकों की स्त्रियों के अनुपम आभूषण उत्पन्न कर देता है। ' Jain Education International तिष्ठन्नस्यां पुरि विजयजं नाथ ! सौख्यं भज त्वं कुर्वन् धर्मं भवति सफलं येन जन्मद्वयं ते । हित्वा चापं युवतिषु चिरं यत्र कामोऽपि तस्थौ तस्यारम्भश्चतुरवनितालोचनैरेव सिद्धः ।। ८१ । । ८१. हे नाथ ! इस नगरी में रहते हुये एवं धर्म करते हुये विजय के द्वारा उत्पन्न सुख का सेवन करें जिस से आप के दोनों जन्म (ऐहिक और आमुष्मिक ) सार्थक होंगे। यहाँ कामदेव भी धनुष छोड़ कर तरुणियों में ठहर गया है, क्योंकि उस का कार्य चतुर वनिताओं के लोचनों से ही पूर्ण हो जाता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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