Book Title: Shildutam
Author(s): Charitrasundar Gani, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 33
________________ 28 शीलदूतम् सुगन्धित, प्रभूत धनयुक्त एवं रत्नों की ज्योति से अन्धकार को दूर करने वाले प्रासाद, स्निग्ध कान्ति वाले, सतत प्रसन्न, शक्ति-सम्पन्न और पाप-हीन आप की तुलना करने में समर्थ है। अहभक्तिर्वसति हृदये तारहारेण साकं मूतौ कान्तिः स्फुरति च सदा शीलधर्मेण सार्द्धम् । चित्ते सातं घनसमयजं विद्यते साम्प्रतं सत् सीमन्ते च त्वदुपगमर्ज यत्र नीर्घ वधूनाम् ।।३।। ६६. जहाँ वधुओं के हृदय में मौक्तिक-हार के साथ जिन-भक्ति बसती है, आकृति में शील-धर्म के साथ कान्ति स्फुरित होती है तथा मन में आप के आगमन के कारण उत्पन्न सुख है और सीमन्त ( माँग) में कदम्बपुष्प। गंगागौराः सितकरहयाकारचौरास्तुरंगाः श्रृंगोत्तुंगा ललितगतयो दानवन्तो गजेन्द्राः । लीलावत्योऽखिलयुवतयो यत्र वीरावतंसाः प्रत्यादिष्टाभरणरुषयश्चन्द्रहासवणाकैः ।। ७।। ७०. वहाँ गंगा के समान उज्ज्वल, चन्द्रमा के रथ के घोड़ों की आकृति वाले अश्व है, पर्वत के शिखर के समान ऊंचे, मतवाले और सुन्दर चाल चलने वाले हाथी है। वहाँ की समस्त युवतियाँ चंचल है और वहाँ के वीरों के शरीर पर अंकित तलवार (चन्द्रहास) के घाव, सुन्दर आभूषणों की शोभा को निराकृत करते हैं। स्नेहादन्यद न भवति परं बन्धनं यत्र विधिचिन्ता काधिन्न भवति परा यत्र धर्म विहाय। कश्चिद् यस्मिन् न भवति परो राजहंसात् सरोगो वित्तेशानां न च खलु वयो यौवनादन्यदस्ति।७१।। ७१. जहाँ स्नेह के अतिरिक्त दूसरा कोई बन्धन नहीं है, धर्म के अतिरिक्त दूसरी कोई चिन्ता नहीं है, राज-हंस के अतिरिक्त कोई दूसरा सरोग (सरोवर में जाने वाला और रोगी) नहीं है, और धनियों की यौवन के अतिरिक्त कोई दूसरी अवस्था नहीं है। वेणीदण्डो जयति भुजगान् मध्यदेशो मृगेन्द्रान् यासामास्यं प्रिय । परिभवत्युच्चकैश्चन्द्रबिम्बम्। चैत्ये नृसत्यतुलमसकृद् यत्र वारांगनास्ता स्त्वद्गम्भीरध्वनिपु शनकैः पुष्करेष्वाहतेषु ।। ७२।। ७२. जिन की वेणी भुजंगों को जीत लेती है, जिन की कटि सिंहों को जीत लेती है और जिन का मुख चन्द्रविम्ब को तिरस्कृत कर देता है वे वारांगनायें जहाँ धीरे-धीरे आपके समान गम्भीर-ध्वनि वाले पुष्करों ( ढोल) के बजने पर बार-बार अनुपम नृत्य करती रहती है। मालासस्तैर्विविधकुसुमैः कुकुमाक्तांविधि - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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