Book Title: Shildutam
Author(s): Charitrasundar Gani, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 26
________________ वासं कुर्वन्नवनिविदिते नित्यरंगेऽत्र देंगे गांगीरैरनिशममृतस्वादमावेत्स्यसि त्वम् । गंगाघोषैः श्रुतिसुखकरैरन्वहं धाब्दजाना मामन्द्राणां फलमविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम् ।।३।। ३८. आप जगद्-विख्यात एवं नित्य सुखद इस नगर में गंगा के जल में सदैव अमृत का स्वाद अनुभव करेंगे और प्रतिदिन कानों को सुख देने वाले गंगा के कलनिनाद के द्वारा मेघों से उत्पन्न गम्भीर गर्जन का अखंड लाभ पायेंगे। नो मुञ्चन्ति प्रिय ! निजकुलाघारभारं महान्तो व्यापारं तत् कुरू गुरुममुं पूर्वजाचाररूपम्। स्नेहाद्यस्मिन् सति हि समुदः पौरनार्योऽतिवर्या नामोक्ष्यन्ते त्वयि मधुकरश्रेणिदीर्घान् कटाक्षान् ।।३।। ३६. हे प्रिय ! महान् लोग अपना कुलाचार नहीं छोड़ते हैं। अतः पूर्वजों का परम्परागत महत्वपूर्ण व्यवसाय स्वीकार कर लें। इस को स्वीकार कर लेने पर स्नेह से हर्षित नगरनारियां भ्रमर- पंक्ति की तरह दीर्घ एवं वरणीय कटाक्ष तुम पर छोड़ेंगी। पायं पायं शुचि सुललितं बन्धुवाक्यं पयो वा स्वादं स्वादं सरसमधुराहारमेयाः प्रमोदम्। स्वामिन् । नित्यं शिव इव मया सस्पृहं वीक्ष्यमाण: शान्तोदेगः स्तिमितनयनं दृष्टभक्तिभवान्याः।। ४०।। ४०. हे नाथ ! जिन्होंने पार्वती की दृढ़ भक्ति देख ली हो, उन शिव के समान लालसा-पूर्वक एकटक दृष्टि से मेरे द्वरा देखे जाते हुये आप निश्चिन्त होकर बान्धवों के मनोहर वचनों अथवा जल को ग्रहण करके और स्वादिष्ठ एवं मधुर आहार का आस्वादन करके आनन्द प्राप्त करें। कार्या शश्वद् भृतिरिह मया वः पुरेत्युक्तिपूर्व पाणी प्रादात प्रिय ! किल भवान् यत्पयो मत्सखीनाम्। गृहणन् दीक्षां निजपरिजनं त्वं विमुञ्चन् क्षणात् तत् तोयोत्सर्गस्तनितमुखरो मा स्म भूविक्लावास्ताः ।।४।। ४१. हे प्रिय ! पूर्व समय में "मुझे सदैव तुम लोगों का भरण-पोषण करना है।" इस प्रकार कहकर आप ने मेरी सखियों के हाथ में जो जल दिया था आज क्षण भर में प्रियजनों को छोड़ कर दीक्षा ग्रहण करते हुये, उस जल को गिरा कर मेघगर्जन सा शब्द मत करें क्योंकि वे भीरु व्यापारस्ते यदि न हृदये संमतो ज्ञाततत्त्वे वाणिज्येनार्जय धनधयं त्यागभोगक्षमं तत्। अंके क्षिप्तानव तव पुराऽनेन पित्रा स्वबन्धून मन्दायन्ते न शलु सुहृदामभ्युपेतार्थकृत्याः ।। ४२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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