Book Title: Shiksha Shatak Author(s): Vidyavijay Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi View full book textPage 3
________________ 3000000001 ॥ अहेम् ॥ ..ramme हिट 79 ॥ परमगुरुश्रीविजयधर्मसूरिभ्यो नमः । शिक्षा-शतक. मित्रो! देखो एक जगतमें ऐसा पंथ निराला है, ___ माने नहि कुछ धर्म-कर्म, मन मानी मौज उडाता है। चेतन-जडका भेद न जाने, शास्त्र कुशस्त्र बनाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने जगमें गजव मचाया है ।। मुनो सर्व सिद्धान्त इसीका, सार सार दिखलाता हूँ, __नहीं लेखिनी माने तो भी, हृदय कठोर बनाता हूँ। दया दानका मूल उखाड़ा, प्रतिमा पत्थर माना है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगहें गजव मचाया है ।। जो अनुकंपा मानी जगने, उससे भी मुख मोडा है, सावध-निरवद्य मेद दिवाकर, रास भयंकर जोड़ा है। १ तेरापंथ मतके उत्पादक मीलम ने, 'अनुकंपा रान' बनाया है, त्रिम. में निदेवताको वे सब बातें लिखी हुई हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28