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८६ गौतमस्वामी गये मृगावतीके वहाँ, जब यही कहन
'भगवन् ! मुखको बांधो' ऐसा श्रीविपार्क में साफ कहा । बांधी हो, तो क्योंकर कहती ? इसमें कुछ न विचारा है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ॥
८७
ओवश्यकर्मे विधि बतलाई, काउस्सग करनेकी, मुहपत्ती हाथमें कही है, फिर भी मुखको दे ताली । दशवैकालिक और अनेकों, सूत्रोंमें बतलाया है,
देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ।
८८
दंडा रखनेका दिखलाया, भगवत्यादि अनेकोंमें, फिर भी इसको नहीं ग्रहें, करते ऐसे सब बातों में । बात एक भी नहीं रखी, साधूका वेष लजाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ॥
८९
सब चीजों को खानेवाले, बनकर बैठे बावाजी, 'खमा', 'पूज्यपरमेश्वर' में, हैं और बने पूरे काजी । वासि - विल और मधु - मक्खन भी, जो आया, सो खाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ||
९०
लाला कर, र्याएं देती हैं, जो हरदम रहती हैं,
१ पृ. २२ । २ आवश्यकनियुक्ति में, काउस्सग के अधिकार में । ३ साध्वीएं।
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