Book Title: Shiksha Shatak
Author(s): Vidyavijay
Publisher: Abhaychand Bhagwan Gandhi

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Page 8
________________ 00000000000000000000000000000 जहाँ चली नहि एक, वहाँ तब 'प्रभु चूके' दिखलाया है, * ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ २२ : रयणादेवीके रोनेसे हुआ शोक उस जिनरिखको, ज्ञाताके नववें अध्ययनमें 'करुण' शब्दको तुम देखो। ) 'करुण' शब्दको ‘ करुणा' कहकर झूठा अर्थ लगाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ॥ दिया दान वार्षिक, प्रभुने जब, अनुकंपाके आशयसे, बार वर्षका कष्ट बतावें, प्रभुको, दारुण विभ्रमसे । दान दिया सब अर्हन्तोंने, औरोंको न कहाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है। २४ प्रज्ञप्त्यागम पनरशतकैमें, मंखलिपुत्र बचाया है, 'अनुकंपा' शब्दके देखते, 'प्रभुचूका ' दर्शाया है। चार ज्ञानके स्वामी प्रभुपर, यही कलंक लगाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है। २५ निर्दोषी प्रभु थे, अप्रमादी, कभी न चूके संयममें, श्रीआचारे यही बताया, देखो नववें अध्ययनमें । १ पृष्ठ ९५८-९५९ । २ मगवत सूत्र । ३ ५० १२१७-१२१८ ।। ४ आचारांगसत्र । ५ पृष्ठ १५०-१५२ । .0000000000000000000000000... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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