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प्रश्नव्याकरणसूत्र कहे, यह आंख खोल देखो भाई । पकडा सो पकड़ा यह रक्खे, छोडे नहि पकडाया है, ऐसे देखो अजब मजवने, जगमें गजब मचाया है ॥
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समकित धारी सूरयाभने प्रभुप्रतिमा पूजी देखो, इसी सूत्र पसेणीमें नाटक भी इसका देखो । स्पष्ट पाठ होनेपर, कैसा फिर, इसको पलटाया है:ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया
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" नाटककी जब आज्ञा मांगी, वहाँ वीरप्रभु मौन रहे, " कहें कुपंथी ' धर्म कहता, क्यों आज्ञा प्रभु नहि देते ? ' समझ नहीं इस न्याय नीतिकी: - 'अनिषिद्ध, स्वीकृत होता है' ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया || ६३
अगर न होती प्रभुकी आज्ञा, जब गौतमने पूछा था, क्यों करते वर्णन नाटकका ? कहते 'अनुचित ही यह था ' । इन बातोंको नहीं समझकर, ठोके जो मन आया है, ऐसे देखो अजब मजबने, जगमें गजब मचाया है | ६४
जिन प्रतिमाकी सेवा करता साधु, निर्जरा करता है, ऐसा खुलंखुल्ला देखो, मैश्नव्याकरण कहता है ।
१ पृ० ३३९ । २ ५० ७५ से । ३ पृ० ४१५ ।
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