Book Title: Shatprabhutadi Sangraha
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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रयणसारः ।
जीर्णोद्धारप्रतिष्ठाजिनपूजातीर्थवन्दनाविषये च धनं । यो भुक्ते स भुंक्ते जिनदृष्टं नरकगतिदुःखं ॥ पुत्तकलत्तविदूरो दारिदो पंगु मूक बहिरंधो । चांडालाइकुजादो पूजादाणाइदव्वहरो ॥ ३३ ॥ पुत्रकलत्रविदूरः दारिद्रः पंगुः मूकः वधिरोऽन्धः ।
चांडालादिकुजातिः पूजादानादिद्रव्यहरः ॥ इच्छिय फलं ण लब्भइ जइ लब्भइ सो ण भंजदे णियदं । वा हाणमायरोसे पूजादाणाइदव्वहरो ॥ ३४ ॥ इच्छितफलं न लभते यदि लभते स न भुक्ते नियतं ।
.......... पूजादानादिद्रव्यहरः ।। गेयहत्थपायनासियकण्णउरंगुलविहाणदिही य । जो तिब्बदुक्खमूलो पूजादाणाइदबहरो ॥ ३५ ॥
गतहस्तपादनासिकाकोरोंऽगुलविधानदृष्टिश्च । यः तीव्रदुःखमूल: पूजादानादिद्रव्यहरः ॥ खयकुमूलसूलो लूयिभयंदरजलोदरखिसिरो। सीदुण्हवाहिराई पूजादाणंतरायकम्मफलं ॥ ३६॥
क्षयकुष्ठमूलशूलं........भगन्दरजलोदर............।
शीतोष्णबाह्यानि पूजादानान्तरायकर्मफलं ॥ गरइतिरियाइदुरईदरिदवियलंगहाणिदुक्खाणि । देवगुरुसत्यचंदणसुयभेयसज्झाइदाणविधणफलं ॥३७॥
नरकतिर्यग्दुर्गतिदरिद्रविकलाङ्गहानिदुःखानि ।
देवगुरुशास्त्रवन्दनाश्रुतभेदस्वाध्यायदानविघ्नफ्लं ॥ १ नेयं गाथा ख. पुस्तके । २ नेयं गाथा ख. पुस्तके । ३-४ रोगविशेषस्य नामनी.। ५ ब्रह्मराइ ख. । ६ नेयं गाथा ख. पुस्तके।
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