Book Title: Shatprabhutadi Sangraha
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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४४२
श्रीकुन्दकुन्दाचार्यविरचिता
इदि णिच्छयववहारं जं भणियं कुंदकुंदमुणिणाहें । जो भावइ सुद्धमणो सो पावइ परमणिवाणं ॥ ९१॥
इति निश्चयव्यवहारं यत् भणितं कुन्दकुन्दमुनिनाथेन । यः भावयति शुद्धमनाः स प्राप्नोति परमनिर्वाणम् ।।
इति श्रीकुन्दकुन्दाचार्यविरचिता द्वादशानुप्रेक्षा
समाप्ता।
* समाप्तोऽयं षटनाभतादिसंग्रहः ।।
शुभं भूयात्।
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