Book Title: Shatprabhutadi Sangraha
Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 466
________________ गाथाः २६६ पृष्ठसंख्याः गाथाः पृष्ठसंख्या: सिवमजरामरलिंगं ... ... . ३०१ से यासे यविदण्डू ... ... १६ सिसुकाले य अयाणे ... १५४ सेवहि च उविलिंग सीलसहस्सद्वारस ... ... सो पत्थि तं पएसो १८२ सुण्णहरे तरुहि ... ... १०६ | सो त्यि दवसवणो १४९ सुण्णायारनिवासो ... ... ४९ / सो देवो जो अन्थ... सुत्तत्थपयविणठो ... ... ५९ संखिज्जमसंखिज्ज ... सुत्तत्थं जिणभणियं ... संजमसंजुत्तस्स य ... सुत्तम्मि जं सुदिहूँ ... ... ५६ सुत्तं हि जाणमाणो... ... हरिहरतुल्लो वि. ... ५७ हिमजलणसलिल. ... ... सुभजोगेण सुभावं... ... ३४५ हिंसारहिए धम्मे ... सुरनिलएसु सुरच्छर ... १३५ | हिंसाविग्इ अहिंसा... सुहेण भाविदं गाणं ... ३५० होऊण दिढचरित्ता... ... १६७ - इति मूलानुक्रमणिका। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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