Book Title: Shatkhandagama Pustak 06 Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati View full book textPage 9
________________ ( २ ) प्राक् कथन जिस वर्ष से इस ग्रंथका प्रकाशन प्रारम्भ हुआ है उसी वर्षसे महायुद्धके कारण मुद्रण सम्बन्धी कठिनाइयां उत्तरोत्तर बढती ही गयी हैं । फिर भी न जाने किस शक्तिके प्रभावसे यह कार्य गतिशील ही बना रहा है, और इस भाग के साथ प्रथम खंड जीवस्थानकी समाप्ति कर अपनी दीर्घ यात्राकी एक बड़ी मंजिल पूरी कर चुका है। अब दूसरे खंड खुद्दाबन्धका कार्य चालू हो गया है । इस खंडको आगामी एक ही जिल्दमें समाप्त कर देनेका विचार है। उसके लिये कागज आदिका प्रबन्ध भी प्रायः हो चुका है । प्रयत्न करना मनुष्यका कर्तव्य है, उसकी सफलता विधिविधान के आधीन है । Jain Education International किंग एडवर्ड कालेज, अमरावती ११-१२-४३ } For Private & Personal Use Only हीरालाल जैन www.jainelibrary.orgPage Navigation
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