Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 12
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 321
________________ अह तोरसि रज्जकए दाएणेगेण अट्ठसयवारे। जिणसु निरंतरमस्से एक्केकं देमि तो रज्जं // 9 // जो मं जूए जिणाइ मए समं पइदिणं जह कमसो।। अट्ठसयं थंभाणं तुरियं पावेसि तो रज्जं // 10 // जइ एगवारमित्थ य खलहिज्जसि तो हविज्ज पुण जूयं / सुणिऊण जणयवयणं हट्ठो तह उज्जमी जाओ // 11 // अण्णोणं ते कीला-परायणा जाव बारवरिसाणि। न लहइ पुण दुट्ठचित्ता पुत्तो कइया वि जयवायं - // 12 // एवं दीणमणो सो न लहइ रज्जं च जूयजयवायं / कहमवि देवबलेण य लहइ जयं णो वि नरजम्मो // 13 // जह तासिं असीणं तस्स जओ दुल्लहो चिरेणा वि / तह मणुयत्तं जीवाणं जाण भवगहणलीणाणं ___ // 14 // जह णरवइ तह भव्वो जीवो अत्थिक्कणयररज्जधुरो / सुहमइरमणीरमणो विवेयमंती पसन्नगुणो . // 15 // तस्स य जह दुट्ठसुओ दुट्ठा तह कायवयणमणजोगा। दुमणा नियजणउवरि णिच्वं दुज्झाणसंपुण्णो // 16 // जह चित्तसहु व्व पवयण-साला विमला दुवालसंगी य / अठ्ठत्तरसयमुत्ता उप्पत्तिखणी य जीवाणं // 17 // भूजलजलणानिलवण-सुहमियरभेयभिण्णदसभेआ / पज्जापज्जयवीसं पत्तेयं जुएहिं दुगवीसं // 18 // बित्तिचउरिदितिविगला-पज्जापज्जत्तजुत्तछब्भेया / जलथलखयरोरग-भुयगा य पणिदि य तिरक्खा . // 19 // सण्णिअसण्णिपज्जा-पज्जयभेऐहिं वीसपंचिंदी। कम्माकम्मगंतर-मणुया दुय समुच्छिमा सत्त // 20 // 312

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