Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 12
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 335
________________ // 4 // | // 6 // // 7 // // 8 // एगम्मि य पत्थावे अमच्चधूया रइ व्व पच्चक्खा। दिट्ठा तेणं गेहे कीलंति विविहकीलाहिं तो पुच्छिओ परियणो कस्सेसा तेण जंपियं देव ! / मंतिसुया अह रण्णा तदुवरि संजायरागेण विविहपयारेहि मग्गिऊण मंति सयं समव्वूढा। परिणयणाणंतरमवि खित्ता अंतेउरे सा य अण्णण्णपवररामा-पसंगवासंगओ य नरवइणो। विस्सुमरिया चिरेण य दलृ आलोयणठियं तं जंपियमणेण ससहर-सरिच्छपसरंतकतिपब्भारा / का एसा कमलच्छी लच्छीविव सुंदरा जुवई ? कंचुइणा संलत्तं सा एसा देव ! मंतिणो धूआ। जा परिणीऊण मुक्का तुब्भेहिं पुव्वकालम्मि एवं भणिओ राया तीए समं तं करेइ संभोगं / उउण्हया त्ति तह च्चिय पाउब्भूओ य से गब्भो अह सा पुव्वमच्चेण आसि भणिया जहा तुहं पुत्ती। पाउब्भविज्ज गब्भो जं च नरिंदो समुल्लवइ / तं साहिज्जइ तइया तहत्ति तइए वि सव्ववुत्तंतो। सिट्ठो पिउणो तेणावि भुज्जखंडम्मि लिहिओ सो / पच्चयकएणमच्चो, पइदिअहं सारवेइ अपमत्तो / जाओ य तीए पुत्तो, सुरिंददत्तो कयं नाम तम्मि य दिणे पसूयाणि तत्थ चत्तारि चेडरूवाणि / अग्गियओ पव्वयओ बहली तह सायरयनामा . उवणीओ पढणत्थं लेहायरियस्स सो अमच्चेणं / तेहिं चेडेहि समं कलाकलावं अहिज्जेइ 326 // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // // 13 // // 14 //

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