Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 12
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // ते वि सिरिमालीपमुहा रण्णो पुत्ता न किंचि वि पढंति / थेवं पि कलायरियेण ताडिया निययजणणीण साहिति रोयमााणा एवं एवं च तेण भणियम्हे। अह कुवियाहि भणिज्जइ ओज्झाओ रायमहिलाहिं हे कवडपंडिय ! सुए अम्हाणं कीस हणइ निलज्जं / पुत्तरयणाई जह तह न होंति एवं पि नो मुणसि पज्जत्तं तुज्झ पाढण-विहीए अच्चंतमूलविहलाए। जो न सुए थेवं पि हु ताडतो वहसि अणुकंपं इय ताहि फरुसवयणेहिं तज्जिएणं उवेहिया गुरुणा / अच्चंतमहामुक्खा ताहे जाया नरिंदसुया राया वि वयमित्तं अयाणमाणो मणम्मि चिंतेइ। . अच्चंतकलाकुसला मम चेव सुया परं एत्थ सो पुण सुरिंददत्तो कलाकलावं अहिज्जिओ सयलं / अगणंतो वि हु समवय-चेडरूंवं ति पच्चूहं / अह महुराए नयरीए पव्वयनराहिवो निययधूयं / पुच्छइ पुत्ति ! तुह वरो जो रोयइ तं पयासेइ तीए पयंपियं ताय ! इंददत्तस्स संति या पुत्ता / सुच्चंति कलाकुसला सूरा धीरा सुरूवा य . तेसि एक्कं सुपरि-क्खिऊण राहावेहाइविहिणाहं / जइ भणसि ताय ! से चिय पाणिग्गहणं करेमि तओ पडिवण्णं नरवइणा ताहे पउराए रायरिद्धीए / सा परिगया पयट्टा गंतुं नयरम्मि इंदपुरे तव्वयणं सोऊणं पिऊणा तुटेण कण्णगट्ठाए / कारविया नियनयरी उब्भवियविचित्तधयनिवहा 320 // 21 // . // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // // 26 //

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