Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 12
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 366
________________ // 60 // // 61 // // 62 // // 63 // // 64 // // 65 // मनो यत्कायरहितं श्वासोच्छ्वासविवर्जितम् / गमागमपथातीतं सर्वव्यापारवर्जितम् निराश्रयं निराधारं सर्वधिारं महोदयम् / पराचीनं पदं ज्ञेयं योगिभिस्तन्निरञ्जनम् पवनो म्रियते यत्र मनो यत्र विलीयते / विज्ञेयं सहजं स्थानं तत्सूक्ष्ममजरामरम् मनोव्यापारनिर्मुक्तं सदैवाभ्यासयोगतः / उन्मनीभावमायातं लभते तत्पदं कमात् विमुक्तविषयासङ्गं सन्निरुद्धं मनो हृदि / यदायात्युन्मनीभावं तदा तत्परमं पदम् ध्यातृध्यानोभयाभावे ध्येयेनैक्यं यदा व्रजेत् / . सोऽयं समरसीभावस्तदेकीकरणं मतम् शुभध्यानस्य सूक्ष्मस्य निराकारस्य किञ्चन। अथातः प्रोच्यते तत्त्वं दुर्जेयं महतामपि / रात्रौ सुप्तेन मूकेन लब्धः स्वप्नोऽत्र केनचित् / न ब्रूते सोऽपि मूकस्तु तेन स्वप्नो न बुध्यते यो मूको यादृशी रात्रिः स्वप्नोऽपि प्राज्ञ ! यादृशः / फलं च यादृशं तस्य श्रुणु सौम्य ! तदादरात् . अविद्यारात्रिसुप्तेन चित्तमूकेन योगिना। * स्वप्नो भावमयो लब्धस्तस्यैवानन्ददायकः कृतस्तेन तिरोभावः परब्रह्मणि योगिना / परब्रह्म गतो भावस्तस्य मुक्तिफलो भवेत् सोमसूर्यद्वयातीतं वायुसंचारवर्जितम् / संकल्पवर्जितं चित्तं परं ब्रह्म निगद्यते . 357 // 66 // // 67 // // 68 // // 69 // // 70 // // 71 //

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