Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 12
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 28 // // 29 // // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // शक्या केन वशीकर्तुं निर्मर्यादा नितम्बिनी। पतिरन्यायकारिण्या, धीबलात् किङ्करीकृतः अप्रार्थितेऽपि स्याल्लाभो, नियतं श्रद्धया भवेत् / श्रद्धया विरहे लाभः, क्वास्ति वृद्धानिदर्शनात् स्वामिनो रोचते यद्यत्, तत्तदेवानुजीविनः / प्रमाणयन्ति वृन्ताकनिन्दकस्तोतृभृत्यवत् उपकारकरं ज्ञात्वा, प्रीणीयान्न तु खेदयेत् / उद्वेजितेन श्राद्धेन, नोपालब्धो यतिर्यतः भ्रमन्ति दाम्भिकाः केचिददेवगुरुधार्मिकाः / परद्वीपादुपेतेन, विक्रीतौ वणिजा यती केचिज्जडधियः कार्ये, पौर्वापर्यं न जानते / पात्रपक्षद्वयात्पक्षे, घृततैले तपस्विना यथा रुचिर्यथा पथ्यं, कार्यं कुर्यात् तथा बुधः / बहुभाषी जनः फल्गुस्तत्र श्रेष्ठी निदर्शनम् परोक्ते यस्य विश्वासस्तस्य दुःखं न दुर्लभम् / वृद्धावचनविश्रम्भात्, क्षुद्राभिस्तस्करो हतः / प्रथमाडम्बरं दृष्ट्वा, न प्रत्येयं विचक्षणैः / अत्यल्पपठितं कीरं, शं मन्ये कुट्टिनी यतः / किं न खेदयति प्राज्ञमत्यन्तचिरकारकः ? / श्रुत्वा वधूश्वशुरयोरालापं प्राघुणा ययुः असत्यवादिभिः पुंभिरपाये को न पात्यते? / कारितौ कलहाक्रन्दौ, गृहिणोः शठवाग्मिना जडश्चिरं विमृश्यापि, विदधात्यसमञ्जसम् / अरालवालिताऽनड्वच्छृङ्गान्तः कं न्यधाज्जटी . .. 345 // 34 // // 35 // // 36 // // 37 // // 38 // // 39 //

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