Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 12
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // // 42 // // 43 // किं ते करेमि इण्डिं ? जं रुच्चइ तं करेसु सो भणइ / नियदुच्चरियवसाओ जमहं तुह गोयरे जाओ वयणपउत्तिं सो तस्स सोउमक्खित्तमाणसो भणइ। हा देव ! परिणई सुयणाण वि जमावयाइती नासियनीसेसतमो जगचूडामणिपयं पव्वण्णो य। पावइ सूरो वि वसणं गयकपणल्लोलाइ कालवसा मझं करेज्ज कइया वि साहेज्जं भद्द वसणपडियस्स। सक्कारिऊण मुक्को अयलेणं मूलदेवो त्ति / अप्पत्तपुव्वनिग्गह-कलंकलज्जो विलक्खभावेण / विण्णयडपुरसम्मुह-मारद्धो एस अह गंतुं पत्तो महाडवीए संबलरहिओ वि कायबलजुत्तो / किंचि वि वयणसहायं पहियमवलोयए जाव एगो भट्टो मग्गे ससंबलो जाइसद्धडो नाम / उयरंभरि महकिविणो तावया तेण सो दिट्ठो एयस्स संबलबलेण जामि इण्डिं न वंचणं काही। मज्झमिमो ते चलिया परोप्परं विहियसंभासा पत्ते दिणपहरतिगे निग्गामपहाए तीए अडवीए। कत्थ वि सजलपएसे विस्सामं काउमारद्धो नीहारिऊण तइयाए सत्थुआ तेण पत्तपुडयाए / आलोडिय सलिलेण भुत्ता एगागिणा चेव भासामेत्तेणंपिय इयरो न निमंतिओ समीवे वि / वढ्तो निठुरमाणसेण ही किविणचरियाई ! विस्सरियमिणं नूणं एयस्स निमंतणं न तेण कयं। कल्ले दाही इइ चिंतिऊण तेणेव सह चलिओ // 44 // // 45 // . // 46 // // 47 // // 48 // // 49 // 320

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