Book Title: Sharir Ka Rup aur Karm
Author(s): Anandprasad Jain
Publisher: Akhil Vishva Jain Mission

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Page 4
________________ । ( २ ) मिलावट, स्थिति, मेल अथवा संगठन एक विशेष निश्चित रूप में ही होते हैं। इनमें से किसी एक में भी फर्क पड़ जाने से या कम-वेश होने या जरा भी इधर उधर होने से उस मौलीक्यूल के गुण असर, और प्रकृति सब में तबदीली आ जाती है। वह मौलीक्यूल उस वस्तु का मौलोक्यूल न रह कर दूसरी वस्तु के मौलीक्यूल में परिवर्तित हो जाता है । मौलीक्यूल वर्गणा का परिवर्तन होना ही वस्तु का परिवर्तन होना है। एक वर्गणा के अन्दर विभिन्न पुद्गलों की संख्या, उनका स्थान, उनकी आपसी दूरी एवं संगठन आदि सब कुछ निश्चित होता है। इन्हीं की समानता के ऊपर वस्तुओं के गुणों की समानता एवं विषमता के ऊपर वस्तुओं की विषमता निर्भर रहती है। किसी भी वर्गणा के अन्दर किसी भी उपरोक्त कथित व्योरा में किसी एक में भी जरा भी हेर-फेर होने से वर्गणा में परिवर्तन होकर उसके गुण, प्रभाव, रूप, प्रकृति (Properties, Characteristics and nature) सब में परिवर्तन हो जाता है और वस्तु बदल कर दूसरी वस्तु हो जाती है। यह बात, स्थिति और क्रम आधुनिक रसायन विज्ञान (Chemistry) द्वारा पूर्णरूप से सिद्ध, स्थापित एवं दिग्दर्शित हो चुकी है और रोज ही व्यवहार तथा क्रियाप्रक्रियाओं में देखने में आती है। ___हर एक क्रिस्टल के रूप, गुण रंग वगैरह उसकी वर्गणाओं की बनावट के ऊपर ही निर्भर करते हैं। क्रिस्टल ही क्यों, संसार की सारी वस्तुओं के रूप और गुणादिक की विभिन्नता का कारण भी उनको बनाने वाले मौलीक्यूलों (वर्गणाओं) की बनावट की विभिन्नता ही है। संसार में जितने प्रकार, किस्म या तरह की वस्तुएँ हैं उतनी ही संख्या वर्गणाओं के प्रकारों की भी हैं। ये असंख्य, अगणित और अनंत हैं। किसी भी जीव का शरीर अनंत प्रकार की वर्गणाओं (molecules of matter) की अनंतानंत संख्याओं का सम्मिलित संगठन, समुदाय या संघ है। मानव का शरीर तो सबसे अधिक विचित्र होने से इसको बनाने वाली “वर्गणाओं" (classified Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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