Book Title: Sharir Ka Rup aur Karm Author(s): Anandprasad Jain Publisher: Akhil Vishva Jain Mission View full book textPage 9
________________ ( ७ ) मन एवं शरीर की गति और हलन चलन उनको निर्माण करने वाली वर्गणाओं के संगठन और वर्गणानिर्मित रूपरेखा पर ही निर्भर करते हैं 1 1 संसार में जितने मनुष्य हैं उनके स्वभाव, बोलचाल, आचार व्यवहार, लिखना पढ़ना मानसिक संचरण, क्रियाकलाप और उनका सब कुछ एक दूसरे से भिन्न है 1 मनुष्य जो कुछ जब भी करता है वह वर्गणाओं की बनाई रूप रेखा की विशेषता द्वारा सीमित एवं वद्ध जीवनी शक्ति द्वारा संचालित होता हुआ ही करता है । एक मनुष्य का रूय, शक्ल सूरत, सुन्दरता - कुरूपता, स्वस्थता, स्वभाव की अच्छाई, बुराई इत्यादि सब कुछ उसके शरीर और मन को निर्माण करने वाली वर्गणाओं द्वारा निर्मित और एक खास तरह काही होता है । कोई मनुष्य जो कुछ भी करता है उसके अतिरिक्त वह दूसरा कर ही नहीं सकता । साँप के शरीर की वर्गणाओं का निर्माण ही ऐसा है कि जो कुछ भोजन करेगा उसमें से विष भी अवश्य तैयार होगा । गाय जो कुछ खायगी उसमें से दूध भी अवश्य तैयार होगा । शरीर और मन का अन्योन्याश्रय संबंध है । मन और मस्तिष्क भी शरीर के ही भाग हैं । गाय जब तक बच्चे वाली रहती है तभी तक दूध देती है 1 बाद में वही भोजन उसके अन्दर जाने पर भी दूध नहीं उत्पन्न करता सबका परिवर्तन होता रहता है । खानपान द्वारा या प्रकाश किरणों द्वारा या श्वासोच्छ्वास इत्यादि द्वारा बाहर से वर्गणात्रों का समूह हमारे शरीर के अन्दर जाता रहता है वहाँ विद्यमान वर्गणाओं से मिल बिछुड़ कर किया - प्रक्रिया द्वारा सब कुछ बनता बदलता रहता है । अतः मनुष्य का स्वभाव, रीति-नीति या बातव्यवहार बदलने के लिए उसको बनाने वाली वर्गणात्रों में परिवर्तन आवश्यक है I मनुष्य जो कुछ सोचता, विचारता, देखता या करता है, उनसे भी आंतरिक वर्गणाओं के संगठन में परिवर्तन होते रहते हैं । किसी मनुष्य का प्रभाव, व्यक्तित्व, और स्वभाव इत्यादि की विचित्रता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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