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सब कुछ वर्गणाओं की बनावट पर ही अवलम्बित होने से उसके शरीर की बनावट, रूप रेखा या सब कुछ उसका निश्चित और अभिन्न रूप से एक दूसरे से संबंधित है। इतना ही नहीं किसी व्यक्ति के हर एक अंग या अंग के छोटे-से-छोटे भाग की बनावट या रूप रेखा भी उसके व्यक्तित्व इत्यादि का पूर्ण परिचायक है। किसी के नाखून मात्र या अंगुलियां या हाथ देखकर ही कोई ज्ञानवान उसके वारे में सब कुछ बतला सकता है। किसी की लिखावट देख कर या आवाज सुनकर उसके बारे में इस विद्या का जानकार या अनुभवी उसके सम्बन्ध की सभी बातें बतला सकता है। किसी के रूप प्राकृति की विभिन्नता के साथ ही उसका स्वभाव, प्रभाव सोचना, विचारना, बात व्यवहार, चाल चलन, लिखना पढ़ना इत्यादि सब कुछ विभिन्न होता है।
हर वस्तु या शरीर से अगणित रूप में अजस्र प्रवाह पुद्गलों का निकलता रहता है जो एक दूसरे के शरीर में घुस कर आपस में एक दूसरे पर प्रभाव डालता रहता है। ऐसी वर्गणाए भी निकलती हैं जिनकी शक्ल सूरत हूबहू उसी तरह की होती है जिस वस्तु या देह से वे निकलती हैं और जब ये ही वर्गणाएं हमारे नेत्रों में घुसती हैं तो वहाँ अपनी प्रतिच्छाया से किसी वस्तु या सत्ता या शरीर की रूपरेखा, आकृतियों, रंग वगैरह का आभास कराती हैं । प्रतिबिंबों का ज्ञान भी इसी तरह होता है। हर एक मानव के शरीर से उस मानब की आकृति की निकलने वाली वर्गणाएं केवल रूप रेखा ही नहीं बनातीं बल्कि उस मानव के गुण स्वभाव को भी लिए रहती हैं, जिनका असर बाहरी संसार पर उसी अनुसार पड़ता है। सत्पुरुष का भला और निम्नकर्मी का निम्न । इतना ही नहीं हम जैसा जिस वस्तु या शरीर या प्रतिछवि का ध्यान करते हैं हमारे अन्दर वैसी ही उसी अनुरूप वर्गणाएं निर्मित होती हैं जो बाहर भी निकलती हैं और अपने अन्दर भी प्रभाव डालती हैंशुभ दर्शन या अच्छे लोगों और वस्तुओं की मूर्तियां या छवि
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