Book Title: Sharir Ka Rup aur Karm
Author(s): Anandprasad Jain
Publisher: Akhil Vishva Jain Mission

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Page 18
________________ ( १६ ) वाली वर्गणाओं की बनावट और संगठन में समुचित परिवर्तन ला सके। हर एक का अक्षुण्ण प्रभाव हर एक दूसरे व्यक्ति पर पूर्णरूप से पड़ता है। अपनी पूर्ण एवं सच्ची उन्नति के लिए अपने चारों तरफ के सभी लोगों की उन्नति आवश्यक है। हम अकेले शारीरिक मानसिक शुद्धि की सफलता में हजारवाँ भाग भी नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि वर्गणाओं का निःसरण और प्रवेश हर एक शरीर से दूसरे शरीर में होता रहता है। रूप, प्राकृतियों का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। भावनाओं और कर्मों का तो फिर कहना ही क्या। कोई भी चित्र मूर्ति, दृष्य इत्यादि जो हम देखते हैं उनका गहरा असर हमारे ऊपर हर तरह से पड़ता है। इसीलिए तीर्थंकर की शान्त, आत्मस्थध्यानमई मूर्ति का दर्शन और ध्यान हमारे भीतर शान्ति उत्पन्न करती है और आत्मभावनाओं को उत्तरोत्तर बढ़ाती है। अपने कर्मों और भावों के असर तथा खानपान के प्रभाव तो हमारे शरीर और कर्मों पर होते ही हैं और उनसे हम अवगत हैं—पर दूसरे लोगों की बातों, कर्मों और भावनाओं का भी असर हमारे ऊपर अक्षुणरूप से पड़ता रहता है। किसी को दोष न । देकर सबको समान अवसर दें यही सच्चा धर्म है और है अनेकान्तात्मक सत्य और अहिंसा का पालन भी । जैन कर्मवाद का वहुत कुछ स्पष्टीकरण इस विवेचन से हो जाता है। वास्तव में जैनाचार्यों की कर्मवाद सम्बन्धी प्रक्रिया का प्ररूपण नितान्त वैज्ञानिक और मौलिक है एवं द्रव्य और भावकर्म के स्वरूप, और कार्यों का विवेचन विज्ञान प्रणाली पर आश्रित है। ____ "कर्मों” का रसायनिक मिश्रण, उससे उत्पन्न शक्ति प्रभाव तथा फल किस आधार पर आश्रित हैं, ऊपर इसका संक्षेप में निरूपण किया गया। इसकी विशद जानकारी के लिए द्रव्य संग्रह, तत्त्वार्थाधिगम सूत्र, गोमट्टसार इत्यादि ग्रन्थ देंखें, एव मेरा लेख “जीवन और विश्व के परिवर्तनों का रहस्य" देखें-यह लेख सम्पादक 'अनेकान्त', अहिन्सा मंदिर, १, दरियागंज, देहली से प्राप्त हो सकता है ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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