Book Title: Sharir Ka Rup aur Karm
Author(s): Anandprasad Jain
Publisher: Akhil Vishva Jain Mission

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ शरीर का रूप और वर्म (एक वैज्ञानिक विवेचन) [ लेखक :-अनन्त प्रसाद जैन, B.Sc. (Eng.)] किसी वस्तु का बाह्याकार मौलीक्यूलों का एक महान समुदाय, संगठन या एकत्रीकरण है। मौलीक्यूल ही किसी वस्तु का छोटा-से-छोटा वह अविभाज्य भाग है, जिसमें वस्तु के सारे गुण पूर्णरूप से विद्यमान रहते हैं। ये छोटे-छोटे मौलीक्यूल मिलकर पिण्डरूप हो किसी वस्तु के आकार और रूप का निर्माण करते हैं। मौलीक्यूल को जैन शास्त्रों में “वर्गणा” नाम दिया गया है। मोलीक्यूलों को ही गुण और प्रभाव के अनुसार विभिन्न वर्गों में विभाजित करने से “वर्गणा" कहा गया है। एटम (Atom, मूलस्कंध या मूलसंघ) भी एक प्रारंभिक प्रकार की वर्गणा ही है। इलेक्ट्रन, प्रोटन और न्यूटन इत्यादि को जो एटम या मौलीक्यूल का सृजन या निर्माण करते हैं हम अंग्रेजी में "electric particles" और हिन्दी में “विद्यु तकण" कह सकते हैं। इन्ही 'विद्यु तकणों' को “परमाणु" भी कहते हैं। जैन शास्त्रों में इनका एकमात्र नाम “पुद्गल” रखा गया है। इन “पुद्गलो" के मिलने से "वर्गणाएँ" बनती हैं। हर एक मौलीक्यूल ( Molecule ) का गुण, असर प्रकृति या प्रभाव सब उसको आंतरिक संगठन एवं बनावट के ऊपर निर्भर करते हैं। किसी भी वस्तु के किसी ऐटम या मौलीक्यूल के अन्दर इलेक्ट्रन (Electron), प्रोटन (Proton) और न्यूटन (Neutron) इत्यादि परमाणुओं की कमवेश संख्या एवं पारस्परिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20