Book Title: Shantiavatar Shantinath Diwakar Chitrakatha 007
Author(s): Vidyutprabhashreeji, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ एक दिन महाराज शान्तिनाथ प्रजा का सुख-दुःख जानने के लिए नगर में घूम शान्तिनाथ का करुणामय हृदय उनकी रहे थे। तभी उन्हे लोगों के झुण्ड बैठे दिखाई दिये। उन्होंने पास जाकर पूछा- दशा देखकर द्रवित हो गया। उन्होंने | तत्काल मंत्री को आदेश दियाआप लोग कौन हैं? हमारे राज्य के अन्न भण्डारों का कहाँ से आये हैं, यहाँ । मुँह खोल दिया जाय। जो भी पीड़ित किसलिए बैठे हैं? और दुःखी व्यक्ति आये उसकी। अन्न, वस्त्र आदि से भरपूर मदद की जाय। LShnd NARSma 4. LAOIसा Khui ता Sirahaula ' JP and महाराज! हम पड़ोसी राज्य से आये हैं। आपके राज्य को छोड़कर आस-पास के सभी राज्यों में पिछले तीन वर्षों से अकाल पड़ रहा है। अन्न के दाने-दाने के लिए हम तरस रहे हैं। अपनी प्राण-रक्षा के लिए आपके नगर में आये हैं। शान्तिनाथ जी ने स्थान-स्थान पर भोजनशालाएं, पशुओं के लिए गौशाला आदि खुलवाईं। M मेरे राज्य में कोई भी भूखा-प्यासा दुःखी नहीं रहना चाहिए। प्रजा का सुख ही राजा का सुख होता है... मानव और पशु-पक्षियों की सेवा करना ही राजधर्म है। DD Rani_Malla.com ADDIS FELond E मलला 50 T Lama NA : Jain Education International 22 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36