Book Title: Shantiavatar Shantinath Diwakar Chitrakatha 007
Author(s): Vidyutprabhashreeji, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाकर चित्रकथा शान्तिअवतार शान्तिनाथ अंक ७ मूल्य १५.०० TA - सुसंस्कार निर्माण विचार शुद्धि ज्ञान वृद्धि मनोरंजन Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0* * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * शान्ति अवतार शान्तिनाथ * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * वैदिक परम्परा में जिस प्रकार २४ अवतारों का वर्णन है उसी प्रकार जैन परम्परा में २४ तीर्थंकरों का वर्णन आता है। २४ तीर्थंकरों की पावन परम्परा में १६ वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ थे। भ. शान्तिनाथ पूर्व जन्म में राजा मेघरथ थे जिन्होंने एक शरणागत कबूतर की प्राण-रक्षा के लिए अपने शरीर का माँस काटकर देने में भी हिच-किचाहट नहीं की। जीव-रक्षा के लिए उनका यह आत्म-बलिदान करूणा प्रधान भारतीय संस्कृति की गौरव गाथा है। वैदिक परम्परा में यही कथा राजा शिवि के नाम से प्रसिद्ध है। भ. शान्तिनाथ का जन्म इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रियों की राजधानी हस्तिनापुर में हुआ। उनके जन्म के समय देश में महामारी का प्रकोप फैला हुआ था जो माता अचिरादेवी द्वारा शान्ति स्तोत्र का पाठ करने पर शान्त हो गया। उनकी विद्यमानता में हस्तिनापुर जनपद में कभी भी दुर्भिक्ष व रोग आदि का उपद्रव नहीं हुआ इस कारण भ. शान्तिनाथ संसार में शान्ति अवतार के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे ५ वें चक्रवर्ती सम्राट बने और फिर राज-वैभव त्यागकर साधना करके १६ वें तीर्थंकर हुए। भगवान महावीर के समय में ही शान्ति अवतार के रूप में उनकी प्रसिद्धि हो चुकी थी, जिसका साक्षी है भगवान महावीर का यह कथन-सन्ति सन्तीकरे लोए-शान्तिनाथ जगत में शान्ति करने वाले हैं। आज भी सम्पूर्ण जैन समाज में शान्तिनाथ शान्ति अवतार के रूप में मान्य व पूज्य हैं। जहाँ कहीं भी, रोग- भय-अग्नि आदि प्राकृतिक व सांघातिक विपत्तियाँ आती हैं तो श्रद्धालु जन व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप में शान्ति- पाठ करते हैं। शान्तिनाथ की पूजा एवं प्रार्थनाएँ होती हैं और उपद्रव शान्ति का चमत्कारी अनुभव भी किया जाता है। प्रस्तुत चित्रकथा में शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ का संक्षिप्त जीवन वृत्त श्री हेमचन्द्राचार्य कृत त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र आदि के आधार पर साध्वी डॉ. विद्युत प्रभाश्री ने तैयार किया है। -गणि मणिप्रभ सागर * ** * * * * * * * *********** * * * * * * * * * * सम्पादन : श्रीचन्द सुराना 'सरस' * लेखन : साध्वी डॉ. विद्युत प्रभाश्री मी एम.ए. पी.एच-डी संयोजन प्रकाशन : संजय सुराना * चित्रांकन : डॉ. त्रिलोक, डॉ. प्रदीप * * * * प्रकाशक * * * * * * दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-2 पारस प्रकाशन पारस परमार्थ प्रतिष्ठान द्वारा श्री हरखचन्द जी नाहटा 21, आनन्द लोक, नई दिल्ली-110049 * * * * * * * * * * © राजेश सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-2 के लिए प्रकाशित। दूरभाष : (0562) 351165, 51789 एवं लक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस द्वारा मुद्रित। * * * * 0*************************************** meaoneteluronate www.jainelibrary.orm Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शासन सन्माद SSSSSSS 2003 साहित्य सम्राट् 22530 संयम सम्राट नमामि सादर नेमिसूरीशं नमामि सादरं लावण्यसूरीशं MARN नमामि सादरं दक्षसूरीशं प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. HES प.पू. आचार्य देव श्रीमद् विजय जिनोत्तम सूरीश्वरजी म. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Serving Jinshasan 106763 gyanmandir@kobatirth.org श्री सुशील सूरिजी के दर्शन से मन चन्दन हो जाते हैं। जिनोत्तम गुरू के वचनों से सब मंगल हो जाते हैं ।। * प्रकाशन सौजन्य श्री अष्टापद जैन तीर्थ, सुशील विहार वरकाणा रोड, मु. रानी स्टेशन - 306115 जि. पाली (राज.) फोन : 02934-22715 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धोनर शान्ति अवतार भगवान शान्ति यह कथा शान्ति अवतार-शान्तिनाथ के तीर्थंकर जन्म में आने से पूर्व के कई जन्मों से प्रारम्भ होती है। उन्होंने श्रीसेन, मेघरथ आदि प्रतापी एवं चक्रवर्ती सम्राटों के रूप में जन्म लिया और कठोर तप ध्यान करके तीर्थंकर बने। TOYEDYOG Fo10 aceae LO2 रत्नपुर नगर पर श्रीसेन नाम का प्रतापी राजा राज्य करता था। वह बहुत धर्मप्रिय, दानी और प्रजापालक था। राजा के अभिनन्दिता और शिखनन्दिता नाम की दो सुन्दर और शीलवती रानियाँ थीं। रानी अभिनन्दिता अपने उत्तम स्वभाव और शील के कारण सभी की प्रिय और प्रशंसा पात्र थी। in Education International For Private Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ समय आने पर रानी अभिनन्दिता ने दो जब दोनों राजकुमार सात वर्ष के हो गये तब सुन्दर पुत्रों को जन्म दिया। उन्हें शिक्षण के लिए गुरुकुल भेजा गया। वाह ! चाँद सूरज जैसे इन पुत्रों का नाम हम इन्दुसेन और बिन्दुसेन रखेंगे। 10 800 ( N epr.../ t.com.a..... दोनों भाई अत्यन्त मेधावी थे। वे सभी कलाओं में बहुत जल्दी पारंगत हो गये। कौशांबी नगरी के राजा बल ने जब उनके विषय में सुना तो अपनी पुत्री का विवाह इन्दुसेन से करने की इच्छा से राजकुमारी को रत्नपुर भेजा। राजकुमारी के साथ एक दासी भी आई थी। वह अत्यन्त रूपवती थी। दोनों भाई दासी के रूप पर आसक्त हो गये। ओह ! कितनी सुन्दर है यह! मैं तो इसी के साथ विवाह करूंगा। मैं तो इसे ही अपनी पत्नी बनाऊँगा। For Privat 2 Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दासी को लेकर दोनों भाइयों में झगड़ा हो गया। तलवारें खिंच गईं। राजा श्रीसेन ने सुना तो तत्काल वहाँ आये। Eur पुत्रो ! एक दासी के लिये भाई-भाई आपस में युद्ध कर रहे हो? धिक्कार है तुम्हें । बन्द करो यह लड़ाई। Eury SURATONY الحرة शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ am Lang गांधीनवार परन्तु राजा का समझाना व्यर्थ गया। निराश होकर महाराज अन्तःपुर में आ गये। एक स्त्री के लिए भाई, भाई के खून का प्यासा हो गया है। अब यहाँ राजलक्ष्मी ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकेगी। निराशा और दुःख के गहरे आघात से राजा ने प्राण त्याग दिये। पति की मृत्यु से दुःखी होकर दोनों रानियों ने भी शरीर त्याग दिया। DO ENV राजा श्रीसेन और रानी अभिनन्दिता के जीव उत्तर कुरूक्षेत्र में पति-पत्नी के रूप में उत्पन्न हुये। For Private Personal Use Only . Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ सरल और सादा जीवन जीते हुए वहाँ से आयुपूर्ण करके प्रथम स्वर्ग से आयु पूर्ण करके श्रीक्षेन का जीव वैतादय श्रीसेन और अभिनन्दिता के जीव प्रथम स्वर्ग में देव बने। पर्वत पर अमिततेज नामक विद्याधर राजा बना। aaoor विशाल और रानी अभिनन्दिता का जीव (आत्मा) श्रीविजय नामक राजा बना। राजा अमिततेन की एक छोटी बहिन थी सुतारा। अमिततेज उसे बहुत प्यार करते थे। उन्होंने सुतारा का विवाह श्रीविजय राजा के साथ कर दिया। बात SANMAAN GAVAN KAPOSE || IDEAlain Jain Education Intemational Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ एक बार श्रीविनय नरेश, रानी सुतारा के साथ वन-विहार कर रहे था अग्निघोष नामक विलपर आकाश मार्ग से कहीं जा रहा था। उसकी दृष्टि सुतारा पर पड़ी तो वह उसकी सुन्दरता पर आसक्त हो गया। COM (मैं इस सुन्दरी को उठाकर अपने महलों में ले चलँ? 1510 Rangle GHoli SONG-6 purnea ATINTM RAVATIVE ECE VODA "2rgacynarasi विद्याधर ने सुन्दर मृग शिशु का रूप धारण किया और रानी के सामने से कुलाँचे भरता हुआ निकला। SPEOS का SU ओह ! कितना सुन्दर मृगछोना है। महाराज, इसे मेरे लिए पकड़ कर लाइये न! राजा मृग शिशु को पकड़ने चला गया। पीछे से अग्निघोष विद्याधर सुतारा को विमान में बैठाकर भगाकर ले गया। बचाओ! बचाओ! कोई बचाओ! यह दुष्ट मुझे उठाकर ले जा रहा है। दुष्ट मुझ DOYOOO O YAL an estucation intematona Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ | इधर राजा श्रीविजय को भ्रमित करने के लिये रानी की आवाज सुनते ही श्रीविजय घबड़ाया हुआ | विद्याधर ने अपनी विद्या की सहायता से सुतारा का वापिस वहाँ पहुँचा और अपनी प्राणप्रिया रानी को मरा दूसरा रूप बनाया और श्रीविजय को आवाज दी- पड़ा देख शोकाकुल हो गया। BAGPAअब मैं जीकर क्या 16000 तुम कहाँ हो प्रिय ! मुझे करूँगा, मैं भी अपनी प्रिया WE सर्प ने डस लिया, बहुत के संग प्राण त्याग दूंगा। SSAR पीड़ा हो रही है....... जERE NGLIPAT 03.00 ALSO MING TARA RAJAare उसने लकड़ियां एकत्रित की। अपनी प्रिया रानी का मंत्रित जल छिड़कते ही नकली सुतारा अट्टहास करती हुई। शव गोद में लेकर चिता में बैठ गया, और आग आकाश में उड़ गई। यह देखकर राजा चकरा गया। लगा दी। इतने में दो विद्याधर वहाँ आये और उसन विद्याधरी से पूछा-- |चितापर मन्त्रित जल छिड़कर आग बुझा दी। (हा...हा ....हा....! WOO 40020.001200 G Sdhya Eeo footra यह क्या मायाजाल है? तुम कौन हो। . . 6000 SNA CAPTER OA ROMA USA READ Main Education International Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम राजा अमिततेज के सेवक हैं। आपको आत्म-दाह करते देख बचाने चले आये। आपकी पत्नी को अग्निघोष नाम का एक विद्याधर उठाकर कर ले गया है। यह स्त्री आपकी पत्नी नहीं, उस विद्याधर का मायाजाल था। अत्य शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ उस दुष्ट अग्निघोष की इतनी हिम्मत!! जाओ उसको पकड़कर मेरे सामने लाओ। AA444 दोनों विद्याधर श्रीविजय को लेकर राजा अमिततेज के पास पहुँचे।। De उसने एक बड़ी सेना श्रीविजय के साथ विद्याधर अग्निघोष से युद्ध करने के लिये भेज दी। डायल महाराज ! अग्निघोष नाम के विद्याधर ने आपकी बहन सुतारा का अपहरण कर लिया है। अमिततेज ने सोचा अग्निघोष पर विजय पाने के लिये महाज्वाला विद्या साधना आवश्यक है। वह हिमवन्त पर्वत पर महाज्वाला विद्यासिद्ध करने के लिए चल पड़ा। 7 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ श्रीविनय ने सेना सहित अग्निघोष पर आक्रमण कर दिया। दोनों सेनाएँ अपनी विद्याशक्ति और अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करने लगीं। अन्त में श्रीविजय ने तलवार से अग्निघोष के दो टुकड़े कर दिये। परन्तु आश्चर्य। वह दोनों टुकड़े अग्निघोष बनकर लड़ने लगे। दो के चार टुकड़े हुये तो चार अग्नि घोष बन गये। होते-होते हमारों अग्निघोष युद्ध करने लगे हा! हा! हा! हा.... Done तभी अमिततेजू महाग्वाला विद्या सिद्ध करके वहाँ आ पहुँचा। उसने अग्निघोष के ऊपर महाज्वाला विद्या फेंकी। ले दुष्ट अब तू नहीं बच सकता। an Education International For Private & 9sonal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ ओह ! महाग्वाला विद्या ! यह तो मुझे जलाकर राख कर देगी। भागूं यहाँ से। O S Rani o2009 O Panas HTTERTAIMER परन्तु उसके पीछे-पीछे महाज्वाला विद्या को आती देखकर किसी ने शरण नहीं दी। अग्निघोष ने कई जगह छुपने की कोशिश की। भागते-भागते अग्निघोष दक्षिण भारत की सीमा पर जा पहुंचा। वहाँ एक केवल ज्ञानी भगवान की सभा में जाकर बैठ गया। महाज्वाला विद्या उसका पीछा करती हुई आयी परन्तु ओह ! इसके अन्दर कैसे I n जाऊँ? यहाँ तो इन्द्र का वज्र TREAभी प्रवेश नहीं कर सकता। COM महाञ्चाला विद्या केवल ज्ञानी भगवान के सामने नहीं जा सकी और वापस लौट गई। 0 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ विद्या ने लौटकर अमिततेज को सारी घटना बताई। अमिततेज और श्री विजय ने तुरन्त वहाँ जाने का विचार किया। दोनों विमान में बैठकर केवली भगवान की सभा में जा पहुँचे। क्रोध और द्वेष जन्म-जन्म तक मनुष्य की आत्मा को जलाता रहता है। क्षमा के जल से ही उसे शांति मिल सकती है। केवली भगवान के प्रवचन सुनकर अमिततेज और श्रीविजय का हृदय बदल गया। अग्निघोष को भी अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा। महाराज ! मुझे क्षमा करें, मैं अपने किये पर लज्जित हूँ। जाओ अग्निघोष! निर्भय होकर जाओ। हमने तुम्हें क्षमा कर दिया। अमिततेज ने उसे क्षमा कर दिया।। | अब अमिततेज ने केवलज्ञानी भगवान से अपना भविष्य पूछा। भगवान ने भविष्य बताते हुये कहा इस भव से नौंवे भव में तुम पाँचवे चक्रवर्ती होंगे और चक्रवर्ती पद को त्याग कर "शान्तिनाथ" नाम के सोलहवें तीर्थंकर बनोगे। श्रीविजय तुम्हारे प्रथम गणधर होंगे। OOOOAADAAAA COPY For Private Personal Use Only DIAVYAYO अपना भविष्य जानकर दोनों नरेश प्रसन्न हुये । w Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ एकबार श्रीविजय और अमिततेज एक अपनी उम्र मात्र २६ दिन शेष जानकर दोनों अवधिज्ञानी मुनि के दर्शन करने गये। मुनि ने नरेश चौंक गये। तत्काल राजधानी वापस आकर उन्हें बताया। अपने पुत्रों को राज्य सौंपा और स्वयं ध्यान, तप आदि साधना करने लगे। राजन् ! आप दोनों की आयु आज से मात्र छब्बीस दिन शेष रह गई है। Con छब्बीस दिन पश्चात् उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद अनेक जन्मों की यात्रा करते हुये अमिततेज की आत्मा ने रत्नसंचया नगरी के राजा क्षेमंकर की रानी के गर्भ से पुत्र के रूप में जन्म लिया। उसका नाम वज्रायुध रखा गया। (areer वज्रायुध बचपन से ही बहुत वीर और साहसी था। • अवधिज्ञान = भूत-भविष्य के बारे में जानने वाला ज्ञान Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ 'युवा होने पर वज्रायुध का विवाह लक्ष्मीवती । नाम की राजकन्या के साथ हो गया। कुछ समय बाद राजा क्षेमंकर ने वज्रायुध को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली। एक दिन वज्रायुध राजदरबार में बैठे थे तभी अस्त्रागार के रक्षक ने सूचना दी। महाराज की जय हो। आयुधशाला में चक्र रत्नमें प्रकट हुआ है TODA वज्रायुध चक्ररत्न के साथ भरत क्षेत्र के छ: खण्डों पर विजय करने निकल पड़े। छ: खण्डों की विजय यात्रा पूर्ण करके उन्होंने चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। | कई हजार वर्षों तक राज्य करने के बाद चक्रवर्ती वज्रायुध ने राज्य त्याग कर दीक्षा ले ली। (चक्रवर्ती सम्राट वज्रायुध की जय हो! Fore hortha.co000001 Boochne PROGRAMOana SIR) RR ASIA वे तप साधना में लीन रहने लगे। आयु पूर्ण होने पर अनशन करके समाधि पूर्वक प्राण त्यागे। और तीसरे देवलोक में देव बने। # चक्र रत्न के प्रकट होने पर राजा षट्खंड विजय करके चक्रवर्ती सम्राट बनता है। D ate Page #17 --------------------------------------------------------------------------  Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ बाज बोला मैं मांसहारी हूँ। मुझे केवल मांस ही चाहिये। मैं भी आपकी शरण में आया हूँ। मैं भूखा हूँ। अगर मैं इसे नहीं खाऊँगा तो भूखा ही मर जाऊँगा। മ तुम्हें भूख लगी है तो अन्य खाद्य पदार्थों से अपनी क्षुधा शान्त करो। जो वस्तु चाहिये 'मिल जायेगी। बान किसी प्रकार राजी नहीं हुआ तो राजा ने कहा कबूतर के भार के बराबर मांस देने की शर्त पर बान राजी हो गया। तराजू के एक पलड़े में कबूतर को रखा; दूसरे पलड़े में राजा अपने शरीर का मांस काट-काट कर रखने लगा। EMAYA YAY Yo अगर तुम्हें मांस ही चाहिये तो किसी अन्य प्राणी का नहीं, मैं अपने शरीर का मांस दूंगा। परन्तु शरणागत पक्षी को नहीं सौंपूँगा। For Prva 14 arschal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बार हस्तिनापुर नगर में भयंकर महामारी फैल गई। प्रतिदिन सैंकड़ों लोग मरने लगे। प्रजा घबराकर राजा विश्वसेन के पास आई। www अपने कक्ष में आकर विश्वसेन प्रभु आराधना में लीन हो गये। GGGG 15000 महाराज ! इस भयंकर विपदा से हमारी रक्षा कीजिये । 00000 12325 राजा ने प्रजा को दुःखी । देखकर प्रतिज्ञा की। उनकी उग्र तपस्या से द्रवित होकर इन्द्र राजा के पास आये और बोले D जब तक यह उपद्रव शान्त नहीं हो जाता, मैं अन्नजल ग्रहण नहीं करूँगा। राजन् ! कितने आश्चर्य की बात है, महारानी के उदर में साक्षात् शान्ति अवतार पल रहे हैं और आप अशान्ति का अनुभव कर रहे हैं? | लगातार कई दिनों तक बिना कुछ खाये पीये तप करते रहे। इन्द्र राजा को शान्ति का उपाय बताकर चले गये। अगले दिन महारानी अचिरादेवी ने इन्द्र के बताये अनुसार शान्ति स्तोत्र मन्त्र का पाठ किया। हे भगवान, हमारे राज्य पर आईं आपत्ति, रोग पीड़ायें शान्त हो जायें। 19 Go. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ शांति स्तोत्र के पाठ से नगर में समस्त उपद्रव रोग पीड़ायें शान्त हो गयीं।। नगर में आज न कोई मरा, NAMBHARA न कोई बीमार पड़ा न कहीं कोई उपद्रव हुआ ! वाह ! सर्वत्र कितनी शान्ति है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का जन्म होते ही तीनों लोकों में प्रकाश जगमगा उठा। पृथ्वी पर आनन्द की वर्षा होने लगी। इन्द्र आदि हजारों देवता बालक का जन्मोत्सव मनाने पृथ्वी पर आये। Rom COOL DO CATE इस पुण्यात्मा सन्तान के प्रभाव से हस्तिनापुर जनपद में महामारी का भयंकर उपद्रव शान्त हो गया। यह बालक संसार में शान्ति करने वाला होने के कारण इसका नाम होगा-शान्ति कुमार 20 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्तिकुमार कुछ बड़ा हुआ तो शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ यौवन वय प्राप्त होने पर राजकुमार शान्तिनाथ का विवाह अनेक राज-कन्याओं के साथ हुआ। vo Vyv LIVVVVVV पुत्र का मुख देखकर मन में गहन शान्ति का अनुभव होता है। CCM HTTTTanr तब एक दिन महाराज विश्वसेन के मन में वैराग्य जगा उन्होंने शान्तिनाथ को राज्य का भार सौंप दिया। बड़ी धूमधाम से शान्तिनाथ का राज्याभिषेक उत्सव मनाया गया। महाराज ! शान्तिनाथ की जय हो!। AN महाराज शान्तिनाथ AKS चिरायु हों! Dore महाराज विश्वसेन आत्म-साधना करने के लिए मुनि बनकर एकान्त वन में चले गये। For Privalersonal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ एक दिन महाराज शान्तिनाथ प्रजा का सुख-दुःख जानने के लिए नगर में घूम शान्तिनाथ का करुणामय हृदय उनकी रहे थे। तभी उन्हे लोगों के झुण्ड बैठे दिखाई दिये। उन्होंने पास जाकर पूछा- दशा देखकर द्रवित हो गया। उन्होंने | तत्काल मंत्री को आदेश दियाआप लोग कौन हैं? हमारे राज्य के अन्न भण्डारों का कहाँ से आये हैं, यहाँ । मुँह खोल दिया जाय। जो भी पीड़ित किसलिए बैठे हैं? और दुःखी व्यक्ति आये उसकी। अन्न, वस्त्र आदि से भरपूर मदद की जाय। LShnd NARSma 4. LAOIसा Khui ता Sirahaula ' JP and महाराज! हम पड़ोसी राज्य से आये हैं। आपके राज्य को छोड़कर आस-पास के सभी राज्यों में पिछले तीन वर्षों से अकाल पड़ रहा है। अन्न के दाने-दाने के लिए हम तरस रहे हैं। अपनी प्राण-रक्षा के लिए आपके नगर में आये हैं। शान्तिनाथ जी ने स्थान-स्थान पर भोजनशालाएं, पशुओं के लिए गौशाला आदि खुलवाईं। M मेरे राज्य में कोई भी भूखा-प्यासा दुःखी नहीं रहना चाहिए। प्रजा का सुख ही राजा का सुख होता है... मानव और पशु-पक्षियों की सेवा करना ही राजधर्म है। DD Rani_Malla.com ADDIS FELond E मलला 50 T Lama NA : 22 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ शान्तीनाथ के राज्य में चारों ओर खुशहाली छाई हुई थी। लोग चोरी और हत्या का नाम नहीं जानते थे। उनके राज्य में न कभी अकाल पड़ा और न ही कभी कोई उपद्रव हुआ। PIU I VRATRU F2SALS ENTER न्याय एवं नीतिपूर्वक राज्य का संचालन करते हुये महाराजा शान्तीनाथ जी को २५ हजार वर्ष हो गये। पूर्व जन्मों के प्रबल पुण्यों के प्रताप से आयुधशाला में चक्र रत्न प्रकट हुआ। महाराज ने चक्र रत्न की पूजा की और महोत्सव मनाया। For Priv 2 Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ | इसके बाद चक्र रत्न आयुधशाला से निकलकर पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा। उसके पीछे महाराज | शान्तीनाथ अपनी विशाल सेना सहित छः खण्डों पर विजय करने निकल पड़े। ६ Bam pronne Morn mot उ य Fesbanelab T समुद्र किनारे सेना ने पड़ाव डाला। महाराज मागधतीर्थ की दिशा में मुँह करके सिंहासन पर बैठ गये। जिसके फलस्वरूप मागध तीर्थ के रक्षक मागधदेव का सिंहासन डोलने लगा। Files Tre 24 Cel WIL Jaanm Pップ (Paa ( Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ मागधदेव तुरन्त शान्तिनाथ जी की सेवा में पहुंचा। उसने अवधिज्ञान से देखा। AN यह तो पांचवें चक्रवर्ती। प्रभो ! मैं पूर्व दिशा का शान्तिनाथ जी हैं। मुझे दिग्पाल मागध देव आपकी | उनकी सेवा में जाना सेवा में चाहिये। कलन interope अनेक प्रकार के दिव्य उपहार भेंट कर मागध देव ने शान्तिनाथ जी की अधीनता स्वीकार कर ली। चक्ररत्न दक्षिण दिशा की ओर चला। वहाँ के नरेशों ने भी बिना युद्ध किये महाराज शान्तिनाथ की अधीनता स्वीकार कर ली। इस तरह छ: खण्डों पर विजय प्राप्त करके शान्तिनाथ अपनी विशाल सेना के साथ राजधानी हस्तिनापुर लौट आये। चक्रवर्ती शान्तीनाथ की जय हो महाराज शान्तिनाथ चिरायु हों! शान्तिनाथ जी ने अपनी धर्मनीति और बल-वैभव से हजारों वर्षों तक छ: खण्ड पर एक छत्र राज्य किया। 25 Main Education International Relibrary.org Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ एक दिन चिन्तन करते हुए चक्रवर्ती शान्तिनाथ के मन में संकल्प जगा NAAMTA पूर्व जन्मों के शुभ कर्मों से मैंने यहाँ अपार बल-वैभव प्राप्त किया है, किन्तु ये भौतिक सुख अन्त में दुःख के ही कारण हैं, मुझे तो अनन्त आत्म-सुख की प्राप्ति करनी हैं... इसके लिए त्याग और तपस्या ही एक मात्र उपाय है..। उन्होंने संसार त्याग कर दीक्षा लेने का संकल्प किया। नव लौकान्तिक देवों ने उपस्थित होकर निवेदन किया। POSD5 हे भगवन्! धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करके संसार को त्याग का मार्ग दिखाइये। चक्रवर्ती शान्तिनाथ ने एक वर्ष तक प्रजा के लिए अपना राजकोष खोल दिया। गरीब-अमीर सभी अपनी मनःइच्छित वस्तु प्राप्त कर प्रसन्न हुए। 26 : Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ ज्येष्ठ कृष्णा एकादशी के दिन अपने पुत्र चक्रायुध को छह खण्ड का विशाल साम्राज्य सौंपकर शान्तिनाथ जी ने एक हजार व्यक्तियों के साथ मुनिव्रत धारण कर लिया som Ergon Emaily.com rashi HREENU MERO s DAD "इन्द्र और राज पुरोहित ने उनके वस्त्र-आभूषण तथा लुचित केश स्वर्ण थाल में ग्रहण किये। For Private 27rsonal use only Jain Education Interational Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ | दीक्षा के एक वर्ष पश्चात् भगवान शान्तीनाथ पुनः हस्तिनापुर पधारे। वहाँ सहस्राम्र उद्यान में नन्दी वृक्ष के नीचे परम शान्त निर्मल शुक्लध्यान में लीन हो गये। उनकी साधना के प्रभाव से वहाँ के वायुमण्डल में एक सुखद शान्ति व्याप्त थी। सिंह, हिरण, गाय, मोर, साँप आदि जीव जन्तु परस्पर वैरभाव भूलकर योगीराज शान्तिनाथ के चरणों में आकर शान्ति का अनुभव करने लगे। enfa पौष शुक्ल नवमी के दिन नन्दी वृक्ष के नीचे ही भगवान को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। उसी स्थान पर देवताओं ने समवसरण की रचना की। भगवान ने प्रथम धर्म देशना दी । () समवसरण - तीर्थंकरों का धर्म प्रवचन मंडप 20 For RILIOR ह For Povate &28sonal Use Only भव्यों! किसी जंगल में एक छायादार विशाल वृक्ष था...... . Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...उस पर दीखने में सुन्दर और मीठे फल लगे थे। रास्ते चलते यात्री थककर उसके नीचे विश्राम करते, | भूख लगने पर उसके फल भी खा लेते। किन्तु जैसे ही उसके फल खाते वे मूर्च्छित हो जाते, या मर जाते। 520 23 राजा ने सैनिकों को आदेश दिया इस जहरीले वृक्ष को तो जड़ से काटकर फेंक दो, ताकि भविष्य में किसी यात्री की जान जोखिम में न पड़े। शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ S छ است एक बार उस देश का राजा भी उस जंगल में उसी वृक्ष के नीचे अपनी सेना सहित विश्राम करने लगा। तभी वनरक्षक ने आकर राजा से निवेदन कियाकी छाया महाराज ! आप इस जहरीले वृक्ष में मत बैठिए । जो भी इसकी छाया में बैठता है वह बीमार हो जाता है, और जो इसके फल खाता है, वह मर जाता है।" राजा की आज्ञा से वृक्ष काट दिया गया। 10 Por Privat: 29 ersonal Use Only mm Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथा का अर्थ समझाते हुए भगवान शान्तिनाथ मी ने कहा- ITIF (भव्यों ! कषाय राग-द्वेष रूप परिणाम एक ऐसा ही जहरीला DIVOLाकाका) वृक्ष है। क्रोध, मान, माया लोभ इसके जहरीले फल हैं, जो भी प्राणी इन फलों का आस्वाद लेता है उसकी सद्वृत्तियाँ मूर्छित हो जाती हैं या मर जाती है। जो आत्म-ज्ञानी पुरुषार्थ मसे इस वृक्ष को जड़ से काट देता है, वह सदा-सदा के लिए जन्म-मरण के भय से मुक्त हो जाता है। HOIROEN १०. Pra कषाय विजय के साथ भगवान शान्तिनाथ जी ने अनेक दृष्टान्तों द्वारा इन्द्रियों की आसक्ति के दुष्परिणाम बताये, 100000 LE सी प्रकार जिस प्रकार दीपक की लौ पर मुग्ध हुआ पतंगा अपनी जान गंवा देता है। मास के स्वाद-वश मछली संगीत की ध्वनि पर आसक्त हुये कांटे में फंसकर प्राण हिरन शिकारी के जाल में फंसगंवा देती हैं। जाते हैं। क भोगों में फंसा मनुष्य अपनी आत्मा की दुर्गति करता है। लडन्टियों के NOTTODiamarATARISTOTRAILS ALLULL IAAILIHINDI भगवान का उपदेश सुनकर राजा चक्रायुध और अन्य पैंतीस राजाओं ने दीक्षा ग्रहण की। चक्रायुध भगवान के प्रथम गणधर बने। For Private 3 ersonal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ तीर्थंकर बनकर प्रभु शान्तिनाथ जी अपने उपदेशों से भव्य जीवों का उपकार करते रहे। अपना अन्तिम | समय निकट जानकर सम्मेद शिखर पर्वत पर पधारे और एक हज़ार मुनिवरों के साथ एक मास का अनशन कर निर्वाण प्राप्त किया।। hmong 30 31 Call समाप्त Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 000000000000000000000 • शान्ति अवतार भगवान श्री शान्तिनाथ की जन्म भूमि पर अवस्थित श्री शान्तिनाथ जिनालय का एक भव्य दृश्य जैन हस्तिनापुर भगवान आदिनाथ के युग से जुड़ा हुआ है। युगादिदेव भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) मुनि दीक्षा के पश्चात् निर्जल व निराहार विचरते हुए लगभग ४०० दिन बाद (वैशाख शुक्ला ३ के दिन) हस्तिनापुर नगर में पधारे। वहाँ पर श्री बाहुबली जी के पौत्र श्रेयांसकुमार ने भगवान को इक्षुरस से वर्षीतप का पारणा करवाया। उस पुण्यस्मृति में आज भी हजारों जैन प्रतिवर्ष इस पावन धरा के दर्शन एवं वर्षीतप का पारणा करके कृतकृत्यता अनुभव करते हैं। परम्परा के अनुसार का इतिहास भगवान आदिनाथ के पश्चात् भगवान शान्तिनाथ का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ। तत्पश्चात् भगवान कुन्थुनाथ एवं भगवान अरनाथ के जन्म से यह भूमि गौरवान्वित हुई। तीनों ही तीर्थंकरों के च्यवन, जन्म, दीक्षा एवं केवलज्ञान कल्याणक अर्थात् कुल १२ कल्याणकों का सौभाग्य इसी नगर की प्राप्त हुआ। इसी के साथ १२ चक्रवर्तियों में से ६ चक्रवर्ती सम्राट का जन्म भी इसी पावन धरा पर हुआ। रामायण काल के वीर परशुराम जी का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ। महाभारत काल में पाण्डवों व कोरवों की यह समृद्धिशाली राजधानी रही। 700 DOES CONC इस प्रकार जैन एवं भारतीय इतिहास में हस्तिनापुर अत्यन्त गौरवमय, समृद्धिशाली, धार्मिक एवं राजनीतिक शक्तियों का केन्द्र रहा है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा व वैशाख शुक्ला ३ को विशाल धार्मिक मेलों का आयोजन होता है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से ६० कि. मी. तथा मेरठ (उ. प्र.) से केवल ३७ कि. मी. दूर स्थित है। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (सदस्यता पत्र मै. दिवाकर प्रकाशन, आगरा। मान्यवर, मैं आपके द्वारा प्रकाशित दिवाकर चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। एक वर्षीय सदस्यता शुल्क एक सौ पचास (Rs. 150.00) रुपये द्विवार्षिक सदस्यता शुल्क तीन सौ (Rs. 300.00) रुपये मैं ड्राफ्ट/एम. ओ. द्वारा भेज रहा हूँ। कृपया मुझे सदस्यता प्रदान कर चित्रकथा नियमित रूप से भेजते रहें। नाम Name (IN CAPITAL LETTERS) पता Address पिन Pin M.O./D. D. No. Date Bank Amount हस्ताक्षर Sign. दिवाकर चित्रकथा की प्रकाशित एवं प्रकाशनाधीन प्रमुख कड़ियाँ .......... ..... क्षमादान भगवान ऋषभदेव णमोकार मन्त्र के चमत्कार चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान महावीर की बोध कथायें बुद्धिनिधान अभय कुमार करुणा निधान भ. महावीर (भाग १) शान्ति अवतार शान्तिनाथ करुणा निधान भ. महावीर (भाग २) सिद्ध चक्र का चमत्कार किस्मत का धनी : धन्ना राजकुमारी चन्दनबाला युवायोगी जम्बूकुमार भ. अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण विश्वासघात का फल चक्रवर्ती सम्राट भरत . आचार्य हेमचन्द्र और सम्राट कुमारपाल मेघकुमार की आत्म-कथा महासती अंजना जगत् गुरु हीरविजयसूरी • मगध सम्राट श्रेणिक और रानी चेलना अमृत पुरुष गौतम भगवान मल्लीनाथ ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती महाबली बाहुबली महायोगी स्थूलभद्र • अर्जुनमाली और अगड़दत्त पिंजरे का पंछी • चन्द्रगुप्त और चाणक्य विचित्र दुश्मनी (समरादित्य केवली) • भक्तामर की चमत्कारी कहानियाँ • बात में बात (मुनिपति) (पाँच वर्ष में ५५ पुस्तकें प्रकाशित करने के लिए संकल्पित) नोट-अंग्रेजी संस्करण की वार्षिक सदस्यता के लिए दो (Rs. 200.00) सौ रुपये भेजें। A-7, Awagarh House, Opp. Anjna Cinema, M. G. Road Agra-282002 Phone: (0562)351165,51789 EGPrivatmana n emia PIRITAMINATERTAIRATRI Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बात : आप से भी.... भगवान महावीर ने मनुष्य को सुख, शान्ति और आनन्दपूर्वक जीने के लिए जो मार्गदर्शक सूत्र दिये हैं, उनमें कुछ मुख्य सूत्र हैं-सज्ञान, सद्-संस्कार, सद्विचार और सदाचार! ज्ञान सबका आधार है, ज्ञान प्राप्त होने पर ही मनुष्य के जीवन में संस्कार, सुविचार और सदाचार का प्रकाश फैलता है। इसलिए सबसे पहली बात है, हम अपनी संस्कृति, धर्म और इतिहास से जीवन्त सम्पर्क बनायें। उनका अध्ययन करें और फिर अपने परिवार को, युवकों, किशोरों और बालकों को ऐसा र संस्कार निर्माणकारी साहित्य देवें, जो पढ़ने में रुचिकर हो, शिक्षाप्रद और ज्ञानवर्धक भी हों। __हम इसी प्रकार का रुचिकर, सरल, मनोरंजन से भरपूर और जैनधर्म एवं संस्कृति से सीधा सम्बन्ध जोड़ने वाला साहित्य आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं-"दिवाकर चित्रकथा" के रूप में ! जैन साहित्य के अक्षय कथा भण्डार में से चुन-चुनकर सबके लिए उपयोगी, पठनीय और & रुचिकर कथाओं का चित्रमय प्रस्तुतीकरण हम कर रहे हैं, आपके लिए, आपके समस्त परिवार के लिए। इन चित्रकथाओं को हिन्दी भाषा के साथ ही विदेशों में बसे लाखों जैनों के लिए अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत करने में हमारा सहयोग कर रहे हैं-JAINA (USA) तथा महावीर सेवा ट्रस्ट-बम्बई। हमें विश्वास है, ये चित्रकथाएँ आपको पसन्द आयेंगी और आपके होनहार बालकों को भी। जब आप सब को पसन्द हैं, तो फिर इसके सदस्य बनने में विलम्ब क्यों? अपनी पसन्द की लाभकारी योजना से अपने मित्रों, परिवारीजनों को भी अवश्य जोड़िए ! पीछे छपा सदस्यता फार्म भरकर शीघ्र ही भेजिए। (हमारे सुन्दर सचित्र प्रकाशन • सचित्र भक्तामर स्तोत्र ३२५/सचित्र णमोकार महामन्त्र (हिन्दी एवं अंग्रेजी में स्वतन्त्र पुस्तकें) १२५/सचित्र कल्पसूत्र ५००/सचित्र तीर्थंकर चरित्र २00/सचित्र भावना आनुपूर्वी २१/चित्रमय भक्तामर (पॉकेट) १८/सचित्र मंगल माला २०/। सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्रपट २५/भक्तामर स्तोत्र का यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लेप) २५/डाक खर्च अतिरिक्त। वी. पी. से मँगाने पर खर्च अधिक आता है। अतः अग्रिम ड्राफ्ट भेजकर समय व धन की बचत करें। दिवाकर प्रकाशन ए-७, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-२८२ 00२ फोन : (०५६२) ३५११६५, ५१७८९ र Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपको करनी है, हम बेचते हैं, विश्वासपूर्ण शुद्ध सोना, चाँदी और हीरे-जवाहरात के आभूषण अपनी पहचान और आप करते हैं, उसकी पहचान ! पाते हैं संतोष और विश्वास। आप इस पहचान में चूक भी सकते हैं। परन्तु हमारा विश्वास कभी नहीं चूकता, कभी नहीं देता आपको धोखा। किंतु अब तो समय आ गया है, करें हम अपनी बात, आप कीजिए अपनी पहचान स्वयं ! कसौटी है यह • किसी प्राणी पर शस्त्र चलता देखकर, उसकी हिंसा, हत्या होते देखकर क्या भीतर ही भीतर आपका हृदय करुणा से भींगने लगता है ? अनुकम्पा से काँपने लगता है ? किसी रोगी, विपत्तिग्रस्त, दर्द से कराहते प्राणी को देखकर उसकी सेवा/सहायता के लिए क्या आपका हृदय पसीज उठता है? हाँ,... तो आप हैं, सच्चे मानव ! किसी दुःखी, जरूरतमंद, संतप्त व अज्ञानग्रस्त मानव को देखकर उसको सान्त्वना व ज्ञान देने, सहयोगदान करने की भावना जागती है आपमें? हाँ,... तो आप हैं, भव्य जीव ! • किसी की अप्रिय बात सुनकर, अप्रिय व्यवहार देखकर तथा मन के प्रतिकूल संयोगों में भी क्या आप अपने को सन्तुलित और 'सम' (स्थिर) रख सकते हैं ? हाँ,... तो आप हैं, सम्यक्त्वी ! क्या धन, परिवार, प्राप्त भोग सामग्रियों को आप मात्र जीवनयापन का साधन मानकर उपयोग करते हैं ? तथा समय आने पर उसे समाज व राष्ट्र के हित में त्यागने का संकल्प भी रखते हैं ? हाँ,... तो आप हैं, वास्तविक श्रावक ! कसौटी आपके सामने है । अपनी पहचान स्वयं कीजिए !! आपका अपना ही हितैषी/शुभ चिन्तक रतनलाल सो. बाफना ज्वेलर्स "नयनतारा", सुभाष चौक, जलगांव-४२५ ००१ फोन : २३९०३, २५९०३, २७३२२, २७२६८ जहा विश्वासही पम्पय Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | हमारा श्रेष्ठ,सुन्दर,सचित्र साहित्य आपके घर एवं पुस्तकालय की शोभा में चार चाँद लगाने के साथ-साथ जीवन की शोभा बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होगा तीर्थकर चरित्र That mighvalod णमो सिध्दरणं णमो आयरिचाणं पामो उवाजकाया णमोलोर सव्वसाहूर्ण सचित्र श्रीकलपसूत्र ILLUSTRATED वार जुन सचित्र श्री कल्पसूत्र मूल प्राकृत पाठ। हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद। 54 भव्य रंगीन चित्र। विविध परिशिष्ट युक्त। मूल्य 500/ सचित्र तीर्थंकर चरित्र 24 तीर्थंकरों का चित्रमय प्रामाणिक जीवन चरित्र। हिन्दी एवं अंग्रेजी में। ज्ञानवर्द्धक रोचक 14 परिशिष्ट / मूल्य 200/ भक्तामर स्तोत्र BHAKTAMAR STOTRA सचित्र भक्तामर स्तोत्र महाप्रभावक भक्तामर स्तोत्र। 48 सुन्दर भावपूर्ण चित्र। हिन्दी अंग्रेजी भाषा में भावानुवाद के साथ। मूल्य 325/ सचित्र णमोकार महामंत्र महामंत्र णमोकार का स्वरूप व आराधना विधि समझाने वाले 32 भव्य चित्रों के साथ। मूल्य 125/ सत्यस भावना आनुपूर्वी चमत्कार भक्तामर (पॉकेट साइज) क्षमादान सुरक्षा कवच की भांति सदा साथ रखने योग्य / विविध मंत्र यंत्र व 48 रंगीन चित्र युक्त। मूल्य 18/ भक्तामर स्तोत्र सचित्र भावना चितामणियनाथ आनुपूर्वी दिवाकर 16 भावनाओं के भव्यभाव चित्रकथा / युक्त रंगीन चित्र। भाव-बोध। बालक-युवक सभी के लिए ज्ञानवर्द्धक सचित्र आनुपूर्वी व१४ जिनदर्शन। कहानियाँ। मूल्य 21/ प्रत्येक का मूल्य ENGLISH EDITIONS OF DIWAKAR CHITRA KATHA ARE ALSO AVAILABLE 15/- रुपया ड्राफ्ट, एम.ओ. आदि निम्न पते पर भेजें एवं अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : मनोरंजक शिक्षाप्रद। दिवाकरप्रकाशन वार्षिक सदस्यता 150/- रुपया, ए-7, अवागढ़ हाऊस, एम. जी. रोड, अंजना सिनेमा के सामने, आगरा-282002 | दो वर्षीय सदस्यता फोन : (0562) 351165,51789 300/- रुपया मात्र ForPrivate a personal HD