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शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ
विद्या ने लौटकर अमिततेज को सारी घटना बताई। अमिततेज और श्री विजय ने तुरन्त वहाँ जाने का विचार किया। दोनों विमान में बैठकर केवली भगवान की सभा में जा पहुँचे।
क्रोध और द्वेष जन्म-जन्म तक मनुष्य की आत्मा को जलाता रहता है। क्षमा के जल से ही उसे शांति मिल सकती है।
केवली भगवान के प्रवचन सुनकर अमिततेज और श्रीविजय का हृदय बदल गया। अग्निघोष को भी अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा।
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महाराज ! मुझे क्षमा
करें, मैं अपने किये पर लज्जित हूँ।
जाओ अग्निघोष! निर्भय होकर जाओ। हमने तुम्हें क्षमा कर दिया।
अमिततेज ने उसे क्षमा कर दिया।।
| अब अमिततेज ने केवलज्ञानी भगवान से अपना भविष्य पूछा। भगवान ने भविष्य बताते हुये कहा
इस भव से नौंवे भव में तुम पाँचवे चक्रवर्ती होंगे और चक्रवर्ती पद को त्याग कर "शान्तिनाथ" नाम के सोलहवें तीर्थंकर बनोगे। श्रीविजय तुम्हारे प्रथम गणधर होंगे।
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अपना भविष्य जानकर दोनों नरेश प्रसन्न हुये ।
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