________________
कथा का अर्थ समझाते हुए भगवान शान्तिनाथ मी ने कहा- ITIF
(भव्यों ! कषाय राग-द्वेष रूप परिणाम एक ऐसा ही जहरीला DIVOLाकाका)
वृक्ष है। क्रोध, मान, माया लोभ इसके जहरीले फल हैं, जो भी प्राणी इन फलों का आस्वाद लेता है उसकी सद्वृत्तियाँ मूर्छित हो जाती हैं या मर जाती है। जो आत्म-ज्ञानी पुरुषार्थ मसे इस वृक्ष को जड़ से काट देता है, वह सदा-सदा के लिए
जन्म-मरण के भय से मुक्त हो जाता है।
HOIROEN
१०.
Pra
कषाय विजय के साथ भगवान शान्तिनाथ जी ने अनेक दृष्टान्तों द्वारा इन्द्रियों की आसक्ति के दुष्परिणाम बताये,
100000
LE
सी प्रकार
जिस प्रकार दीपक की लौ पर मुग्ध हुआ पतंगा
अपनी जान गंवा देता है।
मास के स्वाद-वश मछली संगीत की ध्वनि पर आसक्त हुये कांटे में फंसकर प्राण हिरन शिकारी के जाल में फंसगंवा देती हैं।
जाते हैं। क भोगों में फंसा मनुष्य अपनी आत्मा की दुर्गति करता है।
लडन्टियों के
NOTTODiamarATARISTOTRAILS ALLULL
IAAILIHINDI
भगवान का उपदेश सुनकर राजा चक्रायुध और अन्य पैंतीस राजाओं ने दीक्षा ग्रहण की। चक्रायुध भगवान के प्रथम गणधर बने।
Jain Education International
For Private 3
ersonal Use Only
www.jainelibrary.org