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• शान्ति अवतार भगवान श्री शान्तिनाथ की जन्म भूमि पर अवस्थित श्री शान्तिनाथ जिनालय का एक भव्य दृश्य
जैन हस्तिनापुर
भगवान आदिनाथ के युग से
जुड़ा हुआ है। युगादिदेव भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) मुनि दीक्षा के पश्चात् निर्जल व निराहार विचरते हुए लगभग ४०० दिन बाद (वैशाख शुक्ला ३ के दिन) हस्तिनापुर नगर में पधारे। वहाँ पर श्री बाहुबली जी के पौत्र श्रेयांसकुमार ने भगवान को इक्षुरस से वर्षीतप का पारणा करवाया। उस पुण्यस्मृति में आज भी हजारों जैन प्रतिवर्ष इस पावन धरा के दर्शन एवं वर्षीतप का पारणा करके कृतकृत्यता अनुभव करते हैं।
परम्परा के अनुसार
का इतिहास
भगवान आदिनाथ के पश्चात् भगवान शान्तिनाथ का जन्म इसी पवित्र भूमि पर हुआ। तत्पश्चात् भगवान कुन्थुनाथ एवं भगवान अरनाथ के जन्म से यह भूमि गौरवान्वित हुई। तीनों ही तीर्थंकरों के च्यवन, जन्म, दीक्षा एवं केवलज्ञान कल्याणक अर्थात् कुल १२ कल्याणकों का सौभाग्य इसी नगर की प्राप्त हुआ। इसी के साथ १२ चक्रवर्तियों में से ६ चक्रवर्ती सम्राट का जन्म भी इसी पावन धरा पर हुआ। रामायण काल के वीर परशुराम जी का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ। महाभारत काल में पाण्डवों व कोरवों की यह समृद्धिशाली राजधानी रही।
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इस प्रकार जैन एवं भारतीय इतिहास में हस्तिनापुर अत्यन्त गौरवमय, समृद्धिशाली, धार्मिक एवं राजनीतिक शक्तियों का केन्द्र रहा है। यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा व वैशाख शुक्ला ३ को विशाल धार्मिक मेलों का आयोजन होता है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से ६० कि. मी. तथा मेरठ (उ. प्र.) से केवल ३७ कि. मी. दूर स्थित है।