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दासी को लेकर दोनों भाइयों में झगड़ा हो गया। तलवारें खिंच गईं। राजा श्रीसेन ने सुना तो तत्काल वहाँ आये।
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पुत्रो ! एक दासी के लिये भाई-भाई आपस में युद्ध कर रहे हो? धिक्कार है तुम्हें । बन्द करो यह लड़ाई।
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शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ
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गांधीनवार परन्तु राजा का समझाना व्यर्थ गया। निराश होकर महाराज अन्तःपुर में आ गये।
एक स्त्री के लिए भाई, भाई के खून का प्यासा हो गया है। अब यहाँ राजलक्ष्मी ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकेगी।
निराशा और दुःख के गहरे आघात से राजा ने प्राण त्याग दिये। पति की मृत्यु से दुःखी होकर दोनों रानियों ने भी शरीर त्याग दिया।
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राजा श्रीसेन और रानी अभिनन्दिता के जीव उत्तर कुरूक्षेत्र में पति-पत्नी के रूप में उत्पन्न हुये।
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