Book Title: Shantiavatar Shantinath Diwakar Chitrakatha 007
Author(s): Vidyutprabhashreeji, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 26
________________ शान्ति अवतार भगवान शान्तिनाथ एक दिन चिन्तन करते हुए चक्रवर्ती शान्तिनाथ के मन में संकल्प जगा NAAMTA पूर्व जन्मों के शुभ कर्मों से मैंने यहाँ अपार बल-वैभव प्राप्त किया है, किन्तु ये भौतिक सुख अन्त में दुःख के ही कारण हैं, मुझे तो अनन्त आत्म-सुख की प्राप्ति करनी हैं... इसके लिए त्याग और तपस्या ही एक मात्र उपाय है..। उन्होंने संसार त्याग कर दीक्षा लेने का संकल्प किया। नव लौकान्तिक देवों ने उपस्थित होकर निवेदन किया। POSD5 हे भगवन्! धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करके संसार को त्याग का मार्ग दिखाइये। चक्रवर्ती शान्तिनाथ ने एक वर्ष तक प्रजा के लिए अपना राजकोष खोल दिया। गरीब-अमीर सभी अपनी मनःइच्छित वस्तु प्राप्त कर प्रसन्न हुए। 26 For Private & Personal Use Only: Jain Education International www.jainelibrary.org

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