Book Title: Shantiavatar Shantinath Diwakar Chitrakatha 007
Author(s): Vidyutprabhashreeji, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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कथा का अर्थ समझाते हुए भगवान शान्तिनाथ मी ने कहा- ITIF
(भव्यों ! कषाय राग-द्वेष रूप परिणाम एक ऐसा ही जहरीला DIVOLाकाका)
वृक्ष है। क्रोध, मान, माया लोभ इसके जहरीले फल हैं, जो भी प्राणी इन फलों का आस्वाद लेता है उसकी सद्वृत्तियाँ मूर्छित हो जाती हैं या मर जाती है। जो आत्म-ज्ञानी पुरुषार्थ मसे इस वृक्ष को जड़ से काट देता है, वह सदा-सदा के लिए
जन्म-मरण के भय से मुक्त हो जाता है।
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कषाय विजय के साथ भगवान शान्तिनाथ जी ने अनेक दृष्टान्तों द्वारा इन्द्रियों की आसक्ति के दुष्परिणाम बताये,
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सी प्रकार
जिस प्रकार दीपक की लौ पर मुग्ध हुआ पतंगा
अपनी जान गंवा देता है।
मास के स्वाद-वश मछली संगीत की ध्वनि पर आसक्त हुये कांटे में फंसकर प्राण हिरन शिकारी के जाल में फंसगंवा देती हैं।
जाते हैं। क भोगों में फंसा मनुष्य अपनी आत्मा की दुर्गति करता है।
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भगवान का उपदेश सुनकर राजा चक्रायुध और अन्य पैंतीस राजाओं ने दीक्षा ग्रहण की। चक्रायुध भगवान के प्रथम गणधर बने।
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