Book Title: Shant Sudharas Part 1
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 485
________________ 40000000000000; oooooooooo000 પ્રકરણ ૯ મું Jain Education International 00000000000000000000000000000000 નિર્જરા ભાવના. इन्द्रवज्रा निर्जरा द्वादशधा निरुक्ता, तद् द्वादशानां तपसां विभेदात् । हेतु प्रभेदादिह कार्यभेदः, स्वातन्त्र्यतस्त्वेकविधैव सा स्यात् ॥ क अनुष्टुप् काष्ठोपलादिरूपाणां, निदानानां विभेदतः । वह्निर्यथैकरूपोऽपि पृथग्रूपो विवक्ष्यते । ख २ ॥ निर्जरापि द्वादशधा, तपोभेदैस्तथोदिता । कर्मनिर्जरणात्मा तु, सैकरूपैव वस्तुतः ॥ ग ३ ॥ उपेन्द्रवज्रा निकाचितानामपि कर्मणां यद्, गरीयसां भूधरदुर्धराणाम् । विभेदने वज्रमिवातितीत्रं, नमोऽस्तु तस्मै तपसेऽद्भुताय ॥ ४ ॥ क १ निरूक्ता डी. श्रतावी. द्वादश मार ( पूर्व परिचय भुग्यो ) हेतु अ२९. अरणत्व विशेष प्रभेद पृथ होवाने अरणे. कार्यभेद भिन्नता. स्वातंत्र्यतः पोते बनते, विशेष रक्षितपणे. ख २ उपल पथ्थर उभयेने सोढा साथै वसवाथी अग्नि थाय छे. निदान उत्पा६ २५. विवक्ष्यते विवामां आवे छे. ग ३ उदिता उवामां आवी छे. निर्जरण देशथा उर्भनु क्षयगु आत्मा ३५. वस्तुतः वस्तुस्वये, परमार्थ दृष्टि. 5 घ ४ निकाचित गाढ, खाउ, भीम्लां, भीटपणे वणगी रहेलां. गरियां स मोटा मोटा शिमरवाणा. या भूधर पर्वत. दुर्धर वि. I'rresistible. विभेदन ( १ ) यूरेश खो ( पर्वतपक्षे ) (२) अभी नामवु, मेरी नाम (उर्भ पक्षे). For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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