Book Title: Sanskrit Prakrit Hindi Evam English Shabdakosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना कोश परम्परा : एक दृष्टि जब भी ज्ञान-विज्ञान की विचारणा करते हैं तो सर्वप्रथम हमारी दृष्टि पुरा संस्कृति के साहित्य पर जाती है। जिसे वैदिक संस्कृति में वेद, उपनिषद्, पुराण, मनुस्मृति एवं विविध प्रबंधों का ध्यान आ जाता है, क्योंकि पुरा साहित्य हमारे अनुपम अक्षय भंडार हैं, शब्दों के सागर में। शब्दसागर में आगमों और त्रिपिटकों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। शब्दकोशः - शब्दकोश है शब्दों के संग्रह, अर्थ, व्युत्पत्ति, प्रयोग आदि के कोश। इन कोशों में शब्दों की प्रकृति, वाक्य विन्यास आदि का विवेचन भी है। कोशों की परम्परा लगभग 2600 वर्ष पूर्व से प्राप्त होती है। यह प्राचीन काल में मौखिक रही है। यही आगे चलकर 'नाम-माला' के नाम से प्रचलित हुई। निघण्टु कोश नाम, अव्यय, लिंग, वचन आदि शब्दार्थ ज्ञान कराने वाले कोश हैं। निघण्टु के बाद निरूक्तकार 'यास्क' ने विशिष्ट शब्दों का संग्रह किया है। एकार्थक कोश और अनेकार्थक कोश सामने आए। जैन वाङ्मय'द्वादशांगवाणी' महाविद्याओं में सन्निहित है जो अंग, चतुर्दश पूर्वो के भाष्य, चूर्णियाँ, वृत्तियाँ तथा टीकायें कोश साहित्य का काम करती रहीं। वैयाकरणों ने भी शब्दों के विशाल भंडार दिए। उन्होंने शब्द के विविध पक्ष प्रस्तुत किए। इसके पश्चात् प्रबंधकारों ने शब्दों के विभिन्न प्रयोगों से शब्द भंडार को बढ़ाया। आवश्यकतानुसार फिर संस्कृत में कोश लिखे गए। उनमें हिन्दी, अंग्रेजी अर्थ दिए गए। वे अवर्ण आदि क्रम में व्यवस्थित रूप लेकर शब्दार्थ का सही बोध देने लगे। युग के अनुसार विविध कोश लिखे जाने लगे। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं अनेक भाषाओं से संबंधित कोशों से शिक्षण, अनुसंधान आदि में भी अपना स्थान आया, एक-दूसरी भाषा को समझने का सरल कार्य कोश से सुलभ हो सका। प्राकृत अपभ्रंश कोश लिए गए। पाँचवीं छठी शती पूर्व तक प्राकृत में शब्द कोशों की रचना नहीं हुई थी। आगम ग्रन्थ महावीर के 993 वर्ष में सर्वप्रथम वल्लभी में देवर्धिगणी 'क्षमाश्रमण' ने लिपिबद्ध किये। वे शब्दकोश ही नहीं, ज्ञान-विज्ञान के कोश माने गए। प्राच्य विद्या विशारत 'वुल्हर' ने शब्दकोश को महत्त्व दिया। प्राचीन कोश एवं कोशकार संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश में विविध कोशों की रचना की गई, जिनका उल्लेख निम्न है - धनपाल जैन : पाइयलच्छीनाममाला - प्राकृत कोशों में प्रीम है जो वि० सं० 1029 में लिखा गया। पइयलच्छीनाममाला कोश में 276 गाथायें हैं। इसमें 298 शब्दों के पर्यायवाची अभिधान हैं। इसमें धनपाल ने देशी शब्दों का उल्लेख किया। शाडंधर पद्धत में कोश विषयक ज्ञान है इसकी निम्न रचनाएँ हैं - 1.तिलक मंजरी, 2. श्रावक विधि, 3. ऋषभपंचाशिका, 4. महावीरस्तुति, 5. सत्यपुंडरीक मंडन, 6. शोभनस्तुति टीका। For Private and Personal Use Only

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