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विषय निर्देश
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विषय ५३ .....सामग्री के साधकतमत्व के प्रति प्रश्न-समाधान | ६८ .....स्वभिन्नवेद्यतास्वभाव की प्रदीप-सुखादि में ५४ .....सामग्री की प्रमाणता का निषेध कारकसाकल्य अनुपपत्ति के चार विकल्प
६९ .....आत्मा और मन का संयोग अनेकापत्तिग्रस्त ५४ .....A सकलकारकरूप साकल्य दुर्घट
७० .....ईश्वर को मनःप्रेरणा के लिये अदृष्ट सहाय ५४ .....कर्ता-कर्म-करण में एकान्त भेदाभेद दुर्घट। असंगत ५६ .....B कारकसाकल्य कारकधर्मरूप नहीं है |७१ .....आत्मा-सुखादि-संवेदन का कथंचिद् अभेद ५६ ..... कारकसाकल्य कारककार्य नहीं |७३ .....एक साथ अनेकज्ञानानुत्पत्ति से मन की सिद्धि ५७.....नित्य कारणों से क्रमिक कार्योत्पत्ति दुर्घट
- नैयायिक ५८ .....आत्मा गगनादिभेद के लोप का संकट तदवस्थ | ७४ .....मन अणु होने पर भी सुखादि संवेदन के साथ ५८.....सामर्थ्यभेद के विना कालभेद अशक्य
शब्दश्रवणापत्ति ५९ .....जातिभेद के बदले शक्तिभेद से कार्यभेद क्यों | ७४ .....कर्णविवरगत गगन श्रोत्रेन्द्रियता निष्प्रमाण नहीं
७४ .....उपचरित वस्तु से कार्यसिद्धि दुष्कर ६० .....साकल्य सकल कारणों का कार्य नहीं-तृतीय | ७५ .....युगपद् ज्ञानोत्पादअनुभव भ्रमरूप नहीं है विकल्पनिषेध चालु
७६ .....योगपद्याभिमान और मन की सिद्धि में ६० .....साकल्य के विना सकल कारणों से साकल्य | अन्योन्याश्रय की अनुत्पत्ति
|७६ ..... 'जुगवं दो णत्थि उवओगा' सूत्र का वास्तविक ६१ .....साकल्यरूप करण की उत्पत्ति में अनवस्था अर्थ ६१ .....सकलकारणकार्यरूप साकल्य प्रत्यक्षादिसिद्ध नहीं | ७७ .....ज्ञानग्राहक ज्ञान की प्रत्यक्षता असिद्ध ६२ .....D कारणसाकल्य पदार्थान्तरस्वरूप भी नहीं | ७८ .....आम आदमी में सर्वज्ञताप्रसक्ति का समर्थन ६२ .....साकल्यवादसमर्थक वचनों का निरसन |७९ .....स्वसंविदितज्ञानपक्ष में साधारण्यापत्ति का ६३ .....अव्यभिचारादिविशेषणयुक्त सामग्री के प्रामाण्य निराकरण का निरसन
७९ .....अनुव्यवसाय की कल्पना का निरसन ६४ .....प्रमाण और प्रमिति का कथंचिद् भेदाभेद |८०.....तृतीयादिज्ञानकल्पना का बचाव निरर्थक ६४ .....प्रमाण अबोधस्वरूप नहीं होता ८० .....विषयान्तर संचार से तृतीयादिज्ञान का बाध ६५ .....नैयायिकादिसंमत-ज्ञानपरतःसंवेदन-निरसनम्
अशक्य ६५ .....वैशेषिकमतानुसार विशिष्ट उपलब्धि का ८१......ईश्वर की या शक्तिप्रत्यक्ष की कल्पना का प्रामाण्य दुर्घट
निरसन ६५ .....ज्ञान के स्व-परसंवेदित्व की चर्चा में |८२ .....नित्य आत्मा में क्रमिक शक्ति-आविर्भाव
नैयायिकादिमत का प्रतिषेध ६७ .....मन-इन्द्रिय साधक नैयायिक के अनुमान में | ८३ .....पारमार्थिक अर्थ के निर्णय द्वारा विज्ञानवाद हेतु असिद्ध
का निरसन ६७ .....सुखादिसंवेदन में इन्द्रियसंनिकर्षजन्यत्व हेतु | ८४ .....भावधर्म का स्वीकार - भाव का अस्वीकार व्यभिचारी
भ्रान्तिमूलक क्यों नहीं ?
अशक्य
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