Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 127
________________ आन्ध्र- साम्राज्य । [ १०७ लेख यह ष्ट है दक्षिणकेचे बोल पण्ड्य राज्य पहले से ही स्वाधीन ये और मौयोंके बाद माधवशी बलवान होगये. आन्ध्र - साम्राज्य | नर्मदा और विन्ध्याचलके उपरान्त दक्षिण दिशा के सब ही प्रांत दक्षिणापथके नामसे प्रसिद्ध थे।' जननिक दृष्टि उनके दो भाग वस्तु हो जाते हैं। पहले भागमें वह प्रदेश बाता है जो उत्तर नर्मदा तथा दक्षि कृष्णा और तुङ्गभद्रा बीच है। और दूसरे भाग में वह त्रिकीजाकार भूभाग आता है जो कृष्णा और भद्रा नदियोंमे बारम्भ होकर कुमारी अंतरीक जाना है। यहाँ वामे तामित्र अथवा विदेश है इन दोनों भागकी अपेक्षा इनका इतिहास भी अलग अलग होजाता है। तदनुमायां हम मौर्योक बाद पहले भाग पर अधिकारी आन्ध्रवंशके राजाओंका परिचय लिखने हैं। दक्षिण भारतके दो भाग । अशोक के उपगत बान्धवंश के राजा स्वाधीन होगये थे। यह लाग शातवाहन अथवा शालिवाहन के नाम से भी प्रसिद्ध थे। और इनके ર आन्ध्र राजा । राज्यका मारम्भ ईस्वी पूर्व ३०० के लगभग हुआ था। चंद्रगुप्तके समय में तीस बड़े बड़े प्राचीरवा के १- गैव०, १०१३३ यूनानियोंने इसे 'दखिनबदेस' (Dakhinsbades) कहा था। २- मेकु०, पृष्ठ १५ । ३ - कामाइ०, १०१९१ ।

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