Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 126
________________ १.६] संक्षित जैन इतिहास । हो।' हनी बातों को देखते हुये विद्वज्जन जैन मान्यताको विश्वसनीय प्रगट करते हैं। चन्द्रगुप्तके समान ही उसका पोता सम्पति भी जैन धर्मका अनन्य भक्त था । वह धर्मबीर होने के सम्राट् सम्पति। साथ ही रणवीर भी था। कहते है कि उसने अफगानिस्तानके मागे तुर्क, ईगन आदि देशोंको भी विजय किया था। इन देशोंमें सम्प्रतिने जैन विहार बनवाये थे और जैन साधुमोको वहां भेजकर जनतामें जैन धर्मका प्रचार कगया था। विदेशोंके अतिरिक्त भारतमें भः सम्प्रतिने धर्मपभावनाके भनेक कार्य किये थे। उन्होंने दक्षिण भारतमें भी अपने धर्मप्रचारक भेजे थे। किन्तु सम्प्रतिके बाद मौर्यवंशमें कोई भी योग्य शासक नहीं हुआ । परिणाम स्वरूप मौर्य साम्राज्य छिन्नभिन्न होगया और दक्षिण भारतके राज्य भी ब धीन होगये। अशोकके एक धर्म १-जस पृष्ट ९। । २-" This co-incidence, if it were merely eocidental, is certainly significant. Apart frow minor details, this confirms the opinion of Rhys Dovids that the linguistic and epigraphical evidence so far available confirms in many rospects the general reliability of the traditions ourrent among the Jains..." -Prof. S. R. Sharma, ४. .. ३-स. मा. २ण्ड ११ १९३-२९९ ।

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